यौन उत्पीड़ितों को मुआवजे में देरी पर हाई कोर्ट ने जताई गंभीर चिंता, आवेदनों को शीघ्र निपटाने के दिए निर्देश
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह अच्छी स्थिति नहीं है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के समक्ष 1129 आवेदन लंबित हैं और लगभग 968 आवेदनों के निपटारे में देरी हो रही है। इससे पता चलता है कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने आवश्यक होने पर डीएलएसए को संवेदनशील बनाने का भी निर्देश दिया।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश में यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में पीड़ितों को मुआवजा देने में हो रही देरी पर गंभीर नाराजगी जताते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को ऐसे लंबित आवेदनों का शीघ्रता से निपटारा कराने के लिए सभी प्रयास करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने यह निर्देश दिया है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह अच्छी स्थिति नहीं है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के समक्ष 1129 आवेदन लंबित हैं और लगभग 968 आवेदनों के निपटारे में देरी हो रही है। इससे पता चलता है कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने आवश्यक होने पर डीएलएसए को संवेदनशील बनाने का भी निर्देश दिया।कोर्ट ममता बनाम स्टेट आफ यूपी मामले की सुनवाई कर रहा था। इसमें पोस्को अधिनियम के तहत दर्ज मामले में पीड़िता को दो लाख रुपये का पुनर्वास और मुआवजा देने संबंधी निर्देश देने की मांग की गई है।
इससे पहले कोर्ट ने 28 मार्च को उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की पीड़िताओं/सर्वाइवर के लिए मुआवजा योजना-2018 के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी थी। दो मई को न्यायालय ने प्रस्तुत रिपोर्ट की समीक्षा की।जिला स्तर पर लंबित पीड़ित मुआवजा आवेदनों पर निर्णय लेने में देरी के कारणों से उसे अवगत कराया गया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को अगली सुनवाई तिथि 15 जुलाई तक सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों से नई रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। याची के दावे के संबंध में, अदालत ने नए निर्देश प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त समय दिया है।
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