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Maharashtra Political Crisis: शिवसेना में पहले भी 4 बार हुई है बगावत, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में इस बार की अलग कैसे?

Maharashtra Crisis Anyalsis शिवसेना में बगावत कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई अवसरों पर शिवसेना के कई वरिष्ठ नेता पार्टी से बगावत कर चुके हैं लेकिन इस बार शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में होने जा रही बगावत सामूहिक मानी जा रही है।

By Vijay KumarEdited By: Published: Tue, 21 Jun 2022 06:15 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jun 2022 05:30 PM (IST)
Maharashtra Political Crisis: शिवसेना में पहले भी 4 बार हुई है बगावत, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में इस बार की अलग कैसे?
छगन भुजबल, नारायण राणे, गणेश नाईक, राज ठाकरे

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। शिवसेना में बगावत कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई अवसरों पर शिवसेना के कई वरिष्ठ नेता पार्टी से बगावत कर चुके हैं। लेकिन इन नेताओं की बगावत जहां व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से प्रेरित रही है, वहीं इस बार शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में होने जा रही बगावत शिवसेना विधायकों के मन में अपने भविष्य के प्रति पनप रहे भय का परिणाम मान जा रही है।

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छगन भुजबल

शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे को एक बेजोड़ संगठनकर्ता माना जाता था। यह भी माना जाता था कि उनकी पार्टी में कभी टूट-फूट नहीं हो सकती, लेकिन इस मिथक को सबसे पहले तोड़ा 1991 में तब के शिवसैनिक छगन भुजबल ने शिवसेना के 17 विधायकों को साथ लेकर पार्टी को अलविदा कह दिया था। शिवसेना में यह पहला विद्रोह था। वह भी बालासाहब ठाकरे के उत्कर्ष काल में।

शिवसेना छोड़ने के बाद कांग्रेस में शरद पवार गुट का हिस्सा बननेवाले भुजबल ने पवार के साथ ही कांग्रेस छोड़ दी थी। अन्य पिछड़ा वर्ग के बड़े नेता माने जानेवाले भुजबल उसके बाद 15 साल चली कांग्रेस-राकांपा सरकार में उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे।

नारायण राणे

शिवसेना में दूसरा बड़ा विद्रोह नारायण राणे ने किया। राणे शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके थे। यदि 1999 में दुबारा गठबंधन सरकार बनती, तो भी उनके ही मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी। लेकिन भाजपा-शिवसेना की सरकार न बन पाने के बाद वह लंबे समय तक शिवसेना में नहीं रह सके। तब राजनीति में नए-नए उभर रहे उद्धव ठाकरे से राणे की पटरी न खाने के कारण उन्होंने 2004 में अपने समर्थक पांच विधायकों के साथ शिवसेना को अलविदा कहकर पहले कांग्रेस का दामन थामा।

फिर अपनी खुद की स्वाभिमान पार्टी बनाई। उसके बाद वह भाजपा में आ गए। उन्हें कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनाने का वायदा करके लाया गया था, लेकिन वह वहां राजस्व मंत्री ही बन सके थे। फिलहाल वह खुद भाजपा की केंद्र सरकार में लघु उद्योग मंत्री हैं, तो उनके पुत्र नितेश राणे उनकी परंपरागत विधानसभा सीट कणकवली से विधायक हैं। राणे फिलहाल कोंकण क्षेत्र में भाजपा के मजबूत सूबेदार की भूमिका निभा रहे हैं।

गणेश नाईक

नई मुंबई क्षेत्र में अपनी अच्छी पकड़ रखनेवाले गणेश नाईक भी कभी शिवसेना के तेजतर्रार नेता माने जाते थे। लेकिन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण 1999 में वे शिवसेना छोड़कर शरद पवार द्वारा बनाई गई नई पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए। करीब 20 साल राकांपा में रहने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वह भाजपा में आ गए। गणेश नाईक का साम्राज्य आज भी नई मुंबई में जस का तस चलता है। शिवसेना वहां उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाई है।

राज ठाकरे

इसी बीच शिवसेना में एक और बड़ी बगावत ठाकरे परिवार के अंदर ही हुई। शिवसेना में उद्धव ठाकरे के उभार से क्षुब्ध उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने 2007 में शिवसेना छोड़ अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन कर लिया। कुछ वर्ष मनसे की प्रगति बहुत अच्छी चली। 2009 के विधानसभा चुनाव में मनसे के 12 विधायक चुनकर आए। मुंबई महानगरपालिका में सभासदों की संख्या भी अच्छी-खासी आई। नासिक महानगरपालिका पर मनसे का कब्जा हो गया, लेकिन राज ठाकरे लंबे समय तक अपनी यह सफलता बरकरार नहीं रख सके। आज महाराष्ट्र विधानसभा में उसका सिर्फ एक विधायक है।

ऊपर गिनाई गई शिवसेना का सारी बगावतें बगावत करनेवाले नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को लेकर हुईं। लेकिन इस बार शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में होने जा रही बगावत सामूहिक मानी जा रही है। क्योंकि शिवसेना के ज्यादातर विधायकों को कांग्रेस-राकांपा के साथ गठबंधन करना शुरू से रास नहीं आ रहा है। उन्हें यह भी लगने लगा है कि वे भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़कर अपनी सीट भी नहीं निकाल पाएंगे।

कुछ विधायकों को तो यह चिंता भी सताने लगी है कि कहीं उनकी सीट कांग्रेस-राकांपा के साथ शिवसेना का गठबंधन होने पर इन दोनों दलों के हिस्से में न चली जाए। हाल के राज्यसभा एवं विधान परिषद चुनाव में हुई महाविकास आघाड़ी की करारी हार ने तो उनका आत्मविश्वास और हिला दिया है। इसलिए शिवसेना में इस बार होने जा रही बगावत न सिर्फ पहले की बगावतों से कुछ अलग है, बल्कि यह शिवसेना के लिए ज्यादा घातक भी सिद्ध हो सकती है।


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