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Raajneeti से लेकर Madam Chief Minister तक, इन फिल्मों में स्टार्स ने राजनीतिक भाषण देने के लिए की कड़ी मेहनत

राजनीति से लेकर मैडम चीफ मिनिस्टर तक कई स्टार्स ने फिल्मों में चुनावी रैलियों के दौरान राजनेताओं के भाषण देने की कला और अंदाज को बड़े पर्दे पर उतनी ही विश्वसनीयता से प्रदर्शित करने का बखूबी प्रयास किया है। इस तरह के सीन के लिए स्टार्स को भी काफी मेहनत करनी पड़ती है। चलिए जानते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में।

By Rajshree Verma Edited By: Rajshree Verma Published: Sun, 28 Apr 2024 05:00 AM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 05:00 AM (IST)
सिनेमा की रैली में चुनावी बोली (Photo Credit: X)

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। चुनावी रैलियों के दौरान राजनेताओं के भाषण देने की कला और अंदाज को बड़े पर्दे पर उतनी ही विश्वसनीयता से प्रदर्शित करने का बखूबी प्रयास करते हैं हिंदी सिनेमा के अभिनेता। हालांकि इस दृश्य को सत्य के निकट लाने के लिए उन्हें काफी तैयारी भी करनी पड़ती हैं। ऐसे चुनिंदा दृश्यों और कलाकारों की तैयारियों पर है ये आर्टिकल।

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'अभी हमारे हाथों की मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था और हमारा सुहाग बेरहमी से उजाड़ दिया और आप सब अभी भी चुप हैं, क्यों? जवाब दीजिए हमें कि कैसे हमारे परिवार के हत्यारों को वोट देकर सत्ता की कुर्सी पर बैठाएंगे आप लोग? क्या आपका न्याय यही बोलता है, क्या हमारे बलिदान का कोई मोल नहीं...’ यह संवाद फिल्म 'राजनीति' का है, जहां हजारों की भीड़ के समक्ष कटरीना कैफ का किरदार अपने परिवार के साथ हुए अन्याय की दुहाई देकर मतदाताओं से न्याय की मांग कर रहा है। यह बड़े पर्दे की राजनीतिक रैली थी।

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फिल्मों में यह रैली वास्तविक रैली से कमतर नजर नहीं आती है। राजनीति पर गहरी समझ रखने वाले फिल्म के निर्देशक प्रकाश झा को वास्तविक तरीके से शूटिंग करना पसंद है। इसलिए उन्होंने दो-तीन हजार लोगों की भीड़ के साथ इस पूरे सीक्वेंस की तैयारी की थी। यह एक्स्ट्रा या जूनियर आर्टिस्ट नहीं थे। यह स्थानीय लोग थे। उनके सामने कटरीना को मंझे नेता की तरह भाषण देना था।

विदेश में पली-बढ़ी कटरीना कैफ के लिए फिल्म 'राजनीति' में अपने भाषण वाले दृश्य को करना आसान नहीं था। इस सीन को लेकर कटरीना ने कहा था, 'मैं जब स्टेज की सीढ़ियां चढ़ रही थी, तो मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ रहे थे। नाना सर ने मुझे कहा डरो मत, आराम से सीन करो। सब ठीक होगा। वाकई फिर वह सीन अच्छा हुआ। हालांकि उसके पीछे गहन रिहर्सल भी था।'

इसी फिल्म में लाइमलाइट मनोज बाजपेयी चुरा ले गए थे। उनका बोला संवाद 'करारा जवाब मिलेगा।' आज भी लोगों की जुबान पर है। इंटरनेट मीडिया पर उसके ढेरों मीम्स समय-समय पर बनते हैं। बिहार से ताल्लुक रखने वाले मनोज राजनीतिक माहौल के बीच पले-बढ़े हैं। इस भूमिका की तैयारी को लेकर मनोज बताते हैं, 'फिल्म में मैं जैसे हाथ नचाकर बोलता हूं, तो वह अटल जी से लिया था। उसमें कुछ एक अंदाज किसी एक और नेता से लिया था, नाम नहीं लूंगा, लेकिन कुछ न कुछ अनुभव होते हैं, आप उन्हें मिला-जुलाकर काम करते हैं। इन भूमिकाओं को विश्वसनीय बनाने के लिए रिहर्सल करता हूं। तब तो कल्पना भी नहीं की थी कि यह सीन इतना यादगार बन जाएगा।’

पहचान नहीं पाया कोई

स्क्रीन पर भाषण देने का अवसर फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में ऋचा चड्ढा को भी मिला था। थिएटर बैकग्राउंड होने की वजह से उन्हें इसे फिल्माने में काफी मदद मिली थी। वह सीन ऐसा था कि उनके किरदार को लगता है कि राजनीति में शायद कुछ कर सकती है। यह उसका पहली बार भाषण देने का सीन है। इस सीन को निर्देशक सुभाष कपूर ने गांव में शूट किया था।

वहां के लोग ऋचा को पहचान नहीं पाए थे। उन्हें लगा था कि असली राजनीतिक रैली चल रही है। सुभाष ने सीन को वास्तविक रैली की तरह ही तैयार किया था। कैमरा भी ऐसे रखा कि लोगों को नजर न आए। ऋचा भी किरदार के रंग में रंगी नजर आई थीं।

बरकरार रहे प्रभाव

इसी तरह वेब सीरीज 'रंगबाज : डर की राजनीति' में राजनेता बने विनीत कुमार सिंह अपनी तैयारियों को लेकर कहते हैं, 'कलाकार अच्छा भाषण तभी दे पाएगा, जब वह समझ जाएगा कि किरदार किस परिवार और समाज के कौन से तबके से निकला है। इस शो का किरदार पढ़ा-लिखा पीएचडी किया हुआ, शायरी करता है। उसके बात करने का एक गजब अंदाज था, जो उसके भाषण देने के अंदाज में भी दिखेगा। बाकी मैं बनारस से हूं। उत्तर प्रदेश और बिहार वाले राजनीति की दुनिया से वाकिफ होते हैं।

वहां अखबार पढ़ा नहीं, चाटा जाता है। सो, प्रयास यही होता है कि वह वास्तविक प्रभाव बरकरार रहे। स्क्रीन पर अगर भाषण दिलचस्प नहीं होगा, तो वह वास्तविक जीवन की तरह 15 मिनट तक कोई नहीं सुनेगा। भाषण वाले सीन की दिक्कत यह होती है कि अगर कुछ गलत हुआ, तो बैकफायर भी बहुत होता है। भाषण वाले दृश्य के पीछे भी दिलचस्प कहानी होती है। फिल्ममेकिंग में सब कुछ रीक्रिएट करना होता है, क्योंकि ऐसी कहानियां किसी न किसी से प्रेरित होती हैं।

मेरे भाषण में मैं कई चीजें अपनी तरफ से डाल पाया, क्योंकि मैंने कई भाषण सुने हैं। अटल जी का भाषण सुनने के लिए बेनियाबाग साइकिल से अकेले चला गया था। एक बार प्रमोद महाजन हमारे कालेज में आए थे। अच्छे वक्ताओं को सुना है, जो कहीं न कहीं जेहन में रह गया है।

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