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भारत और चीन के लिए क्‍यों बेहद महत्‍वपूर्ण हैं श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे

श्रीलंका में आने वाले राष्‍ट्रपति चुनाव के नतीजे भारत और चीन दोनों देशों के लिए रणनीतिक और कूटनीतिक नजरिये से बेहद अहम हैं। जानें किसके जीतने से किस देश को होगा फायदा...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 09:21 AM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 09:36 AM (IST)
भारत और चीन के लिए क्‍यों बेहद महत्‍वपूर्ण हैं श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे
भारत और चीन के लिए क्‍यों बेहद महत्‍वपूर्ण हैं श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुई वोटिंग के बाद रविवार देर रात तक पूरे नतीजों के आने की उम्मीद जताई जा रही है। भारत और चीन दोनों ही चुनावी नतीजों पर अपनी पैनी निगाहें जमाए रखें हैं। श्रीलंका दोनों देशों के लिए रणनीतिक और कूटनीतिक नजरिये से अहम हैं। इसकी वजह है हिंद महासागर में श्रीलंका की स्थिति, जो कि व्यापारिक दृष्टि से इन दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लगभग 2.1 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका में मतदाताओं की संख्या करीब 1.6 करोड़ है। जिस उम्मीदवार को 50 फीसद अधिक वोट पड़ेंगे, वह ही राष्ट्रपति चुना जाएगा।

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इनके बीच कांटे की टक्कर

चुनाव में अब तक दो बड़े नेताओं गोतबया राजपक्षे और सजित प्रेमदासा के बीच सीधी टक्कर देखी जा रही है। मौजूदा राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने इस बार चुनाव में नहीं खड़े होने का फैसला किया। उनकी श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) ने राजपक्षे के समर्थन की बात कही है। राजपक्षे अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे की सरकार के अहम सदस्य रह चुके हैं। लोकप्रियता के बावजूद, गोतबया राजपक्षे और उनकी श्रीलंका पोदुजना पेरमुना (एसएलपीपी) पार्टी अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी कठोर नीतियों को लेकर चर्चा में रही है।

भारत की चिंता

चीन ने कोलंबो बंदरगाह को भी विकसित करने में काफी बड़ी भूमिका निभाई है। वहीं भारत ने कोलंबो बंदरगाह में ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल बनाने को लेकर श्रीलंका के साथ एक समझौता किया है। भारत की इस समझौते को लेकर काफी रुचि थी क्योंकि भारत को आने वाला बहुत सारा सामान कोलंबो बंदरगाह से होकर आता है। ऐसे में श्रीलंका में कोई भी सत्ता में आए, भारत उससे सहयोग लेना चाहेगा। लेकिन राजपक्षे परिवार के रुख को लेकर उसकी कुछ चिंताएं रही हैं।

कमजोर हुए रिश्ते

गृह युद्ध के बाद श्रीलंका के विदेशी मामलों में भारत की अहमियत कम हुई है। श्रीलंकाई तमिलों और भारत के बीच के संबंध गृह युद्ध के बाद कमजोर हुए हैं। यहां बहुत से तमिलों को लगता है कि भारत ने उन्हें धोखा दिया है। सिंघली भी भारत के साथ बहुत करीबी नाता नहीं महसूस करते और उसे एक खतरे के रूप में देखते हैं। लेकिन भारत के मुकाबले चीन ने बहुत खामोशी, लेकिन लगातार श्रीलंका में निवेश किया है और देश को कर्ज के तले दबा दिया।

...तो चीन के लिए होगी बड़ी जीत

प्रेमदासा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएएफ) का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दक्षिणपंथी झुकाव वाले सत्तारूढ़ यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के साथ गठबंधन का सदस्य है। अभी यूएनपी के डिप्टी लीडर और सरकार में आवास, निर्माण और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हैं। राजपक्षे का जीतना चीन के लिए फायदेमंद कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि गोतबया राजपक्षे की जीत चीन के लिए एक बड़ी जीत होगी। गोतबया के भाई महिंद्रा राजपक्षे के सत्ता में रहते हुए यहां 10 वर्षों के दौरान चीन ने अपने निवेश में लगातार बढ़ोतरी की है।

प्रेमदासा की जीत पर टिकी उम्‍मीदें

राजपक्षे 2015 तक श्रीलंका की सत्ता में रहे। महिंदा राजपक्षे ने चीन से अरबों डॉलर का उधार लिया और अपने मुख्य कोलंबो बंदरगाह के द्वार चीनी युद्धपोतों के लिए खोल दिए। उन्होंने चीन के साथ मिलकर एक विशाल बंदरगाह (हबनटोटा) का निर्माण भी किया, इसकी वजह से चीन के कर्ज तले दबने की आशंका भी जाहिर की गई। यह उम्मीद जताई जा रही है, गोतबया राजपक्षे के राष्ट्रपति बनने के बाद कमोबेश यही रुझाना जारी रहेगा। दूसरी तरफ प्रेमदासा ने तर्कसंगत व्यापार नीति के साथ मैत्रीपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंध विकसित करने का वादा किया है।


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