एशियाई देशों के 'अब बस' कहने से पश्चिमी देशों के सामने शुरू होने वाली है परेशानी, ये है मामला
पश्चिमी देशों से आ रहा कचरा अब एशियाई देशों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। यही वजह है कि अब इस कचरे को न कहा जा रहा है। ऐसे में पश्चिमी देशों के सामने इसके खरीददार का संकट है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पश्चिमी देशों के कचरे के लिए अब एशियाई देश डंपिंग यार्ड नहीं बनेंगे। इसको लेकर अब एशियाई देशों के सुर लगभग एक जैसे ही हो गए हैं। आपको बता दें कि अब तक चीन, फिलीपींस, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया पश्चिमी देशों का कचरा लेते आ रहे थे। यही वजह थी कि पश्चिमी देशों लिए यह देश किसी डंपिंग यार्ड की ही तरह हो गए थे। लेकिन अब इन देशों ने इस कचरे को लेने से साफ इंकार कर दिया है। इसकी वजह है कि पश्चिमी देशों से आ रहे कचरे में कई तरह का हानिकारक कचरा भी शामिल है, जो इन देशों के पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकता है। यही वजह है कि अब इन देशों ने इस कचरे को अपने यहां पर भेजने से इंकार कर दिया है। कुछ देशों ने तो पश्चिमी देशों से आए कचरे को वापस उसी देश में भेजने की भी तैयारी कर दी है। इन देशों की नई रणनीति की वजह से अब पश्चिमी देशों के सामने कचरे के निबटारे की समस्या खड़ी हो गई है। नाइजीरिया, सोमालिया, केन्या, मैक्सिको, लेबनान पश्चिमी देशों के मुख्य डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं।
वापस भेजा जाएगा सैकड़ों टन कचरा
गौरतलब है कि इंडोनेशिया ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, हांगकांग, फ्रांस और जर्मनी से आए सैकड़ों टन कचरे को वापस भेजने का फैसला लिया है। इस तरह के करीब 50 कंटेनर हैं जिन्हें अब वापस भेजा जाना है। प्लास्टिक रिसाइक्लिंग के नाम पर भेजे गए कंटेनरों में सड़ा-गला और हानिकारक कचरा मिलने के बाद इंडोनेशिया के पर्यावरण मंत्रालय ने यह फैसला किया है। इंडोनेशिया के सुराबाया में कंटेनरों की जांच में पता चला कि उनमें प्लास्टिक के अलावा स्वास्थ्य के लिए खतरनाक कचरा भी है। ऐसे में स्थानीय लोगों के हित और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इसे वापस भेज दिया जाएगा।
हानिकारक कचरा
इंडोनेशिया के एक पर्यावरण समर्थक समूह इकोलॉजिकल ऑब्सर्वेशन एंड वेटलैंड कंजर्वेशन के मुताबिक विकसित देशों से आ रहे कचरे के कारण पूर्वी जावा राज्य में ब्रांतास नदी प्रदूषित हो चुकी है. इस नदी में पाई जाने वाली 80 प्रतिशत मछलियों में माइक्रोप्लास्टिक के नमूने मिले थे, जिसके बाद कचरा आयात करने पर रोक लगाने की मांग की थी। व्यापार मंत्रालय के मुताबिक 2017 के मुकाबले 2018 में पश्चिमी देशों से कचरे का आयात दोगुने से भी अधिक हो गया। 2017 में इसकी मात्रा जहां 12.88 करोड़ किलो थी, वहीं 2018 में यह बढ़कर 32.04 करोड़ किलो तक पहुंच गई।
पश्चिमी देशों के लिए सिरदर्द बनी प्लास्टिक
दरअसल, पश्चिमी देशों के लिए प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल अब इन देशों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। एशियाई देशों के कचरा लेने से मना करने के बाद इन देशों के सामने समस्या ये है कि अब इस हजारों टन कचरे को कहां और कैसे ठिकाना लगाया जाए। इंडोनेशिया की ही बात करें तो पश्चिमी देशों का कचरा लेने से इंकार करने के बाद देश में इसका अवैध व्यापार भी न हो सके इसको लेकर भी सरकार कड़े कदम उठाने जा रही है।
पहले भी इंडोनेशिया ने वापस भेजा है कचरा
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि इंडोनेशिया ने इन देशों को कचरा वापस भेजा हो, इससे पहले मई-जून में भी 5-10 कंटेनर वापस उन्हीं देशों में भेज दिए गए थे, जहां से ये आए थे। फिलीपींस और कनाडा के बीच तो इस कचरे को लेकर आपसी संबंधों में कड़वाहट आ गई थी. फिलीपींस ने कनाडा के कचरे से भरे 100 कंटेनर वापस कर दिए थे। यहां पर ये भी बता दें कि पिछले साल चीन ने भी पश्चिमी देशों के कचरे को लेने पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद इन देशों ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का रुख किया था। लेकिन, पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बाद इन देशों ने इसको लेकर बेहद साहसिक कदम उठाया है। इन देशों का अब एक सुर है कि पश्चिमी देशों के कचरे के लिए डंपिंग ग्राउंड नहीं बन सकते।
चीन ने पहले ही भांप लिया था नुकसान
इंडोनेशिया ने जिस कचरे पर अब चिंता जताते हुए इस पर रोक का फैसला लिया है उसको चीन ने पिछले वर्ष ही भांप लिया था। चीन ने इस पर रोक लगाते हुए प्रदूषित होती हवा को मुख्य वजह बताया था। इसके अलावा उसका कहना था कि इस कचरे में आने वाले माल का बड़ा हिस्सा घटिया गुणवत्ता का होता था, जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता था। इस तरह के कचरे से निपटने के लिए चीन के पास इंतजाम भी नहीं थे।
अमेरिका कचरे का सबसे बड़ा उत्पादित देश
यहां पर आपको ये बताना भी जरूरी है कि अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ा कचरा उत्पादक देश है, जो प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 1,609 पाउंड है। इसका अर्थ है कि दुनिया के पांच फीसद लोग दुनिया का 40 फीसद कचरा पैदा करते हैं। वहीं दुनिया भर से निकले कचरे का केवल 13.5 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। इसके अलावा करीब 5.5 फीसद वैश्विक कचरे का इस्तेमाल खाद बनाने के लिए हो पाता है। इसके अलावा बचा हुआ कचरा केवल प्रदुषण ही फैलाता है। गौरतलब है कि दुनिया भर में लगभग 2.01 बिलियन मीट्रिक टन ठोस कचरा होता है। विश्व बैंक का अनुमान है कि कुल अपशिष्ट उत्पादन साल 2050 तक बढ़कर 3.40 बिलियन मीट्रिक टन हो जाएगा।
भारत भी करता है कचरे का आयात
पश्चिमी देशों के कचरे को आयात करने वालों में केवल यही देश नहीं है। भारत की ही बात करें तो यहां यूरोप से मैटल, टैक्सटाइल और पुराने टायरों के साथ-साथ बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी आता है। इसके अलावा पाकिस्तान में भी काफी बड़ी मात्रा में ई-कचरा आता है। अफ्रीकी देश घाना में इस कचरे की वजह से हर वर्ष हजारों लोग मर जाते हैं। यहां पर दुनिया में सबसे अधिक कचरा खरीदने वाला देश घाना ही है।