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जालसाजों का भी बाप था 'विक्‍टर', फ्रांस के मशहूर एफिल टावर को भी दो बार बेचा

ठगों के बारे में तो आपने भी खूब सुना होगा। लेकिन क्‍या कभी आपने विक्‍टर लास्टिग का नाम सुना है जिसने एक नहीं दो बार एफिल टावर को बेच दिया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 02:30 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2019 02:31 PM (IST)
जालसाजों का भी बाप था 'विक्‍टर', फ्रांस के मशहूर एफिल टावर को भी दो बार बेचा
जालसाजों का भी बाप था 'विक्‍टर', फ्रांस के मशहूर एफिल टावर को भी दो बार बेचा

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। दुनिया के सात अजूबों में शुमार एफिल टावर को एक ठग अपनी जालसाजी से दो-दो बार बेच चुका है। विक्टर लस्टिग नाम के इस ठग ने ठगी के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ डाले थे और पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। लस्टिग के जीवन का पहली बड़ी ठगी रूमानियन बॉक्‍स स्‍कैम के नाम से जानी जाती है। रूमानियन बॉक्‍स स्‍कैम के जरिए लस्टिग ने पैसे और जालसा‍जी करने वालों को अपना मोहरा बनाया था। उसने उन्‍हें घर बैठकर दुनिया की किसी भी करेंसी को छापने की वो मशीन दिखाई जो उन्‍हें रातों-रात और अमीर बना सकती थी। यह जालसाजी उसने अमेरिका में रहते हुए की थी। उसने व्‍यापारियों को एक ऐसा देवदार से बना एक बॉक्स दिखाया जिसके अंदर धातु के तारों से बनी एक मशीन थी। इसमें रेडियम लगा हुआ था। उसने अफवाह फैलाई कि वह नोट छापने की मशीन बेचना चाहता है। उसके इस झांसे में एक व्‍यापारी आ गया। उसने इस व्‍यापारी को यकीन दिलाया कि रेडियम का इस्तेमाल कर इस मशीन से 100 डॉलर तक के नोट बनाए जा सकते हैं। उसने यह मशीन व्‍यापारी को 30 हजार डॉलर में बेची थी।

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1925 में विक्टर लस्टिग यूरोप आया। एक दिन विक्टर के हाथ एक अखबार लगा। वह घर पर उस अखबार को पढ़ रहा था, जिसमें एफिल टावर की मरम्मत के बारे में खबर छपी थी। बस यहीं से विक्टर के दिमाग में एक शातिर आइडिया आया। उसने एफिल टावर बेचने के लिए डाक व टेलीग्राफ मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर का वेष लिया। 

प्रिंटिंग प्रेस से फर्जी दस्तावेज तैयार किए, जिसमें एफिल टावर से जुड़ी जानकारियां डाली गई। इसके बाद चुनिंदा व्यापारियों तक यह खबर पहुंचाई कि एफिल टावर की मरम्मत करवाना सरकार के लिए मुश्किल है। इसलिए वह इसे बेच रही है। चूंकि यह गुप्त योजना है इसलिए इसका ज्यादा प्रचार नहीं हो रहा है। कुछ दिनों बाद एक व्यापारी आंद्रे पॉयजन ने फोन किया और कहा कि वह एफिल टावर खरीदना चाहता है। इस कॉन्ट्रैक्ट को देने के लिए विक्टर ने व्यापारी से मोटी रिश्वत मांगी। व्यापारी घूस देने को तैयार हो गया। उसने काफी सारा पैसा विक्टर तक पहुंचा दिया। विक्टर पैसा लेकर रातों रात आस्ट्रिया भाग गया। 

जब तक पॉयजन को इसका पता चला कि वह ठगी का शिकार हुआ है तब तक लस्टिग देश छोड़ चुका था। पाऍजन को जब खुद के  ठगे जाने का पता चला तो उसको बेहद शर्मिंदगी का भी शिकार होना पड़ा। सबसे अधिक शर्मिंदगी उसे इस घटना की जानकारी पुलिस को देने में हो रही थी। लस्टिग ने खुद आस्ट्रिया में पॉयजन को भी तलाशने की कोशिश की लेकिन नाकामी के चलते वह वापस पेरिस लौट आया।   

भले ही पुलिस को पॉयजन से हुई ठगी की जानकारी नहीं थी, फिर भी विक्टर चौकन्ना था। यह ठगी उसके जीवन की सबसे बड़ी ठगी भी थी। उसने एक बार फिर से एफिल टावरको बेचने की योजना पर काम करना शुरू किया और पेरिस लौट आया। एक बार फिर उसकी योजना के झांसे में आ गए और इसको खरीदने के लिए तैयार हो गए। एक बार से वह घूस के पैसे लेकर फरार हो गया। लेकिन इस बार व्‍यापारी ने  पुलिस को इसकी सूचना समय रहते दे दी थी। उसको गिरफ्तार कर लिया गया और उसे अमेरिका भेज दिया गया।   

कनाडा, यूरोप और अमेरिका में ठगी करने के बाद विक्टर पर पुलिस की चौकस निगाह थी। उसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी लगी थी। 1930 में लास्टिग ने अपने नए नाम टॉम शॉ के साथ एक साझेदार के साथ मिलकर फिर नकली नोट छापने का काम शुरू किया। यह साझेदारी दोनों के लिए फायदे का सौदा भी रही और दोनों को इसमें मुनाफा भी हुआ। कई देशों में धोखेबाजी और जालसाजी करने वाले विक्‍टर लास्टिग को पुलिस रंगे हाथों अहम सुबूतों के साथ पकड़ना चाहती थी। इस काम में पुलिस की मदद विक्‍टर की गर्ल फ्रेंड ने की। दरअसल उसको लगता था कि लास्टिग उसको धोखा दे रहा है। इसी वजह से उसने पुलिस को लास्टिग की जानकारी भी दी थी। पुलिस ने प्रेमिका से मिली जानकारी के आधार पर न्यूयॉर्क से विक्टर को गिरफ्तार कर लिया। विक्‍टर को जेल भेजा गया लेकिन वह वहां से फरार हो गया। पुलिस ने उसको दोबारा पकड़ने में सफलता हासिल की और इस बार उसको बीस वर्ष की सजा हुई। इसके इसके बाद उसने अपनी अंतिम सांस भी जेल में ही ली थी। 11 मार्च 1947 को जेल में ही उसकी मौत हो गई। 

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