Move to Jagran APP

इन मुद्दों पर है चीन और अमेरिका में सीधा टकराव

डोनाल्ड ट्रंप के चीन के दौरे पर भले ही दोनों देशों के बीच 250 अरब डॉलर के व्या्पारिक समझौते हुए हों लेकिन यह भी सच है कि दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दे जस के तस हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 11 Nov 2017 05:12 PM (IST)Updated: Sun, 12 Nov 2017 01:23 PM (IST)
इन मुद्दों पर है चीन और अमेरिका में सीधा टकराव
इन मुद्दों पर है चीन और अमेरिका में सीधा टकराव

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप अपनी एशियाई देशों की यात्रा के लगभग अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके हैं। लेकिन इस पड़ाव पर पहुंचने से पहले उन्‍होंने तीन अहम देशों की यात्रा की जिसमें जापान, दक्षिण कोरिया और चीन शामिल है। उनकी इन तीन देशों की यात्रा में सबसे अहम पड़ाव यदि किसी को माना जाएगा तो वह चीन ही है। इस दौरान अमेरिका और चीन के बीच करीब 250 अरब डॉलर के व्‍यापार समझौते भी हुए। लेकिन इन सभी के बावजूद अब भी कई ऐसे मुद्दे बरकरार हैं जिन पर अमेरिका और चीन के बीच विवाद है। इनकी वजह से दोनों देशों के बीच हमेशा खाई बनी रहती है।

loksabha election banner

अमेरिका फर्स्‍ट पॉलिसी

डोनाल्‍ड ट्रंप ने सत्‍ता संभालने के साथ ही ‘अमेरिका फर्स्‍ट’ की नीति का ऐलान किया था। लेकिन यह ऐलान ट्रंप के चीन दौरे पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए है कि अमेरिका ने दोनों देशों के बीच व्‍यापार को लेकर जो संतुलन स्‍थापित करने की बात कही थी चीन ने उसको खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय देशों की आर्थिक सहयोग परिषद की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने ट्रंप को करारा जवाब देते हुए कहा कि वैश्वीकरण व मुक्त व्यापार अब वापस न होने वाली व्यवस्था है। हां, इसमें संतुलन स्थापित होना चाहिए और सभी के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसी के चलते ट्रंप उन व्यापार समझौतों से पीछे हट रहे हैं जिनमें आयात-निर्यात का असंतुलन है। ट्रंप ने यह अंतर खत्म करने की वकालत जापान में भी की व चीन में भी। इससे पहले वह 11 देशों के साथ हुआ अंतर प्रशांत व्यापार समझौता (टीपीपी) रद कर चुके हैं। यहां पर यह बताना जरूरी होगा कि ट्रंप इस बात को दोहरा चुके हैं कि अमेरिका अब और असंतुलन बर्दाश्त नहीं करेगा। वह छल से होने वाला व्यापार नहीं सहेगा। साफ-सुथरी और बराबरी वाली नीति पर व्यापार करने के लिए वह तैयार है। इसमें संबद्ध देशों का फायदा और सम्मान होना चाहिए।

वन चाइना पॉलिसी

सत्‍ता पर काबिज होने के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप ने चीन को जिस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की थी वह थी ‘वन चाइना पॉलिसी’। उनका कहना था कि चीन की तरफ से रियायतें मिले बिना इसे जारी रखने का कोई मतलब नहीं बनता। वन चाइना पॉलिसी का मतलब ये है कि दुनिया के जो देश पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) के साथ कूटनीतिक रिश्ते चाहते हैं, उन्हें रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) से सारे आधिकारिक रिश्ते तोड़ने होंगे। ये नीति कई दशकों से अमरीका-चीन संबंधों का अहम आधार रही है। इस नीति के तहत अमेरिका ताइवान के बजाय चीन से आधिकारिक रिश्ते रखता है, लेकिन ताइवान से उसके अनाधिकारिक, पर मजबूत रिश्‍ते हैं। वन चाइना पॉलिसी के चलते ही अमेरिका की तरफ से चीन को व्‍यापार में कई तरह की रियायतें भी दी जाती रही हैं। लेकिन इसके उलट अमेरिका को चीन व्‍यापार में कोई रियायत नहीं देता है। सत्‍ता पर काबिज होने के बाद से ही ट्रंप इस पालिसी पर अपना विरोध दर्ज कराते रहे हैं।

उत्‍तर कोरिया पर चीन की नीति

उत्‍तर कोरिया को लेकर भी चीन और अमेरिका में विरोध बरकरार है। दरअसल, अमेरिका चीन से इस मुद्दे पर जिस तरह का साथ चाहता है उससे चीन बचता आ रहा है। इतना ही नहीं चीन इस मुद्दे को उठाकर दक्षिण कोरिया में तैनात की गई थाड मिसाइल प्रणाली का भी विरोध करता आ रहा है। इसके अलावा चीन को कोरियाई प्रायद्वीप में मौजूद अमेरिकी युद्धपोतों से भी एतराज है। उत्‍तर कोरिया से व्‍यापारिक रिश्‍ते खत्‍म करने से भी उसको परहेज है। ट्रंप के हालिया चीन दौरे में 250 अरब डॉलर के समझौते जरूर हुए हैं लेकिन जिन मुद्दों पर विवाद है उन पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका है। यहां पर यह बात हमें नहीं भूलनी चाहिए कि चीन के जापान समेत दक्षिण कोरिया से भी कई मुद्दों पर मतभेद हैं।

दक्षिण चीन सागर

दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका और चीन के मतभेद किसी से भी छिपे नहीं रहे हैं। चीन बारबार इसको लेकर अमेरिका को आंख दिखाता रहा है। चीन ने पहले भी कई बार यहां से गुजरने वाले अमेरिकी युद्धपोतों पर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर की है। दक्षिण चीन सागर को लेकर मतभेद की एक बड़ी वजह इसका सामरिक महत्‍व है। इसका इतना ही महत्‍व व्‍यापारिक भी है। सिंगापुर से ताईवान की खाड़ी तक यह करीब करीब 3500000 वर्ग किमी तक फैला हुआ है। यहां से समुद्र के रास्ते प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ डॉलर का व्यापार होता है और दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज हर वर्ष यहीं से गुजरते हैं। यह दुनिया में व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण रास्तों में से है। यहां 11 अरब बैरल तेल और 190 लाख करोड़ घन फुट प्राकृतिक गैस का भंडार होने का अनुमान है। चीन की साम्यवादी सरकार 1947 के एक पुराने नक्शे के सहारे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा ठोकती है।

दोनों के बीच नया विवाद बना सीपैक

सीपैक या फिर चीन-पाकिस्‍तान के बीच बनने वाला आर्थिक गलियारा दोनों देशों के बीच नया विवादित मु्द्दा बन रहा है। इसकी शुरुआत अमेरिका के उस बयान से हुई है जिसमें सीपैक का विरोध करते हुए कहा गया था यह विवादित भूमि से होकर गुजरता है। दरअसल, यह आर्थिक गलियारा जम्‍मू कश्‍मीर के उस इलाके से होकर गुजरता है जिस पर पाकिस्‍तान ने अवैध रूप से कब्‍जा कर रखा है। अमेरिका ने इस गलियारे पर पहली बार इस तरह का बयान भी दिया है। इतना ही चीन के वन बेल्‍ट वन रोड योजना पर भी अमेरिका ने सवाल खड़ा किया है और इस संबंध में भारत का साथ दिया है। वहीं अमेरिका का लगातार भारत की तरफ होता झुकाव भी चीन के साथ उसके संबंधों में गिरावट ला रहा है।

जानें, आखिर कौन हैं राफिया नाज, जिनपर आग बबूला हो रहे हैं मुस्लिम कट्टरपंथी 

मिशन मार्स के लिए 24 लाख लोगों को मिला बोर्डिंग पास, लाखों भारतीय भी शामिल 

13 हजार करोड़ की लागत से बना है हादसों का यमुना-आगरा ‘एक्‍सप्रेस वे’ 
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.