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गठबंधन के बाबत

पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में अभी कुछ माह का वक्त है, लेकिन बंगाल के सियासी गलियारे में गठबंधन और महागठबंधन को लेकर बहस और चर्चाओं का बाजार गर्म है।

By Atul GuptaEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2016 04:33 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2016 04:36 AM (IST)
गठबंधन के बाबत

पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव में अभी कुछ माह का वक्त है, लेकिन बंगाल के सियासी गलियारे में गठबंधन और महागठबंधन को लेकर बहस और चर्चाओं का बाजार गर्म है। माकपा और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर पिछले कई माह से जो नेता दबे स्वर में बात कर रहे थे, वे अब खुलेआम बोल रहे हैं। इतना ही नहीं, माकपा के साथ गठबंधन को लेकर बंगाल के कांग्रेसी नेता पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को दो बार पत्र भी लिख चुके हैं। देखा जा रहा है कि दोनों ही दलों के राज्य के शीर्ष नेता गठबंधन की वकालत तो कर रहे हैं, लेकिन आपस में एक-दूसरे से अब तक किसी ने बात भी भी नहीं की है। गठबंधन की बातें अब तक जुबानी ही हैं। अभी जमीनी स्तर पर कोई कवायद नजर नहीं आ रही। माकपा और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच गठबंधन को लेकर न तो अब तक कोई भेंट-मुलाकात हुई है और ना ही कोई सार्थक बात। बावजूद इसके गठबंधन का राग दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं के मुंह से सुना जा रहा है। माकपा राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्र ने सार्वजनिक सभा में कहा कि तृणमूल को हटाने के लिए हम कांग्रेस का साथ चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस इस पर मौन है। इसके अगले ही दिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व विधायक मानस भुइयां ने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन सार्वजनिक सभा में बोलने से नहीं होता है, बल्कि इसके लिए कांग्रेस हाईकमान से बात करनी होती है। भुइयां के बयान के तत्काल बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी की प्रतिक्रिया आई कि तृणमूल के साथ किसी भी हाल में कांग्रेस नहीं जाएगी। इसका मतलब साफ है कि अधीर चौधरी भी माकपा के साथ गठबंधन चाहते हैं। यहां सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस में भी कई ऐसे नेता हैं, जो किसी दल के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस के राज्य व केंद्रीय नेतृत्व माकपा से गठबंधन का फैसला कैसे लेगा? यदि कांग्रेस नेतृत्व गठबंधन के लिए तैयार भी हो जाता है तो विरोध करने वाले पार्टी नेताओं को कैसे मनाएंगे? यही हाल माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा का भी है। फॉरवर्ड ब्लॉक, आरएसपी समेत और भी कई दल हैं, जो कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसी स्थिति में माकपा भी इस मुद्दे पर स्वतंत्र निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में माकपा 11 दलों के कुनबा वाममोर्चा को कैसे राजी करेगी? माकपा राज्य सचिव ने इस मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए घटक दलों के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू की है। मिश्र की इस मुद्दे पर फॉरवर्ड ब्लॉक और भाकपा के साथ बैठक हो चुकी है, पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। राजनीतिक ऊंट के करवट बदलने में देर नहीं होती है।

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(स्थानीय संपादकीय, पश्चिम बंगाल)


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