राष्ट्रपति चुनावः असमंजस में ममता, दोनों खेमों को भांप कर खोलना चाहती हैं पत्ता
खबर यह है कि 15 मई को ममता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए दिल्ली जा रही हैं।
जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से रणनीति बनाने में जुटी हैं। परंतु, तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी असमंजस में फंसी हुई हैं। 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में सबसे आगे दौड़ रहीं ममता इस दफा शिथिल हैं। वह 'वेट एंड वॉच' की नीति अपना रखी हैं। इसकी वजह भी वाजिब है। क्योंकि, राष्ट्रीय सियासत का नब्ज टटोले बिना 2012 में ममता ने जो किया, उससे उनकी फजीहत ही नहीं हुई थी, बल्कि खिल्ली भी खूब उड़ी थी।
बाद में हालात ऐसे बनें कि अंत में फिर उन्हें कांग्रेस के साथ ही खड़ा होना पड़ा। एक कहावत भी है-'दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है'। इन दिनों यह कहावत ममता पर सटीक बैठ रही है। 2012 में संप्रग सरकार की सहयोगी पार्टी होने के बावजूद ममता ने कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का विरोध ही नहीं किया था, बल्कि अपने मनमुताबिक उम्मीदवार तय करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी।
ममता ने तो राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी तक का नाम उछाल दिया था। यह जानते हुए भी कि उनके सुझाए नामों में से एक के भी जीतने की कोई गारंटी नहीं थी।
2012 में मुलायम ने कराई थी बड़ी फजीहत
2012 के राष्ट्रपति चुनाव में ममता की उस वक्त बड़ी फजीहत हो गई, जब समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव 'यू टर्न' लेकर कांग्रेस के समर्थन में खड़े हो गए और अब्दुल कलाम ने पत्र लिख कर चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। यही वजह है कि उक्त घटना से सबक लेते हुए इस दफा ममता ऐसे किसी भी पचड़े में नहीं पड़ना चाहतीं, जिससे एक बार फिर वह मजाक का पात्र बनें।
इस बीच, खबर यह है कि 15 मई को ममता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए दिल्ली जा रही हैं। निश्चित तौर पर सोनिया व ममता में राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा होगी। पर, शायद ही बंगाल की मुख्यमंत्री अपना पत्ता खोलें।
आडवाणी, सुषमा व सुमित्रा के नाम पर जता चुकी हैं सहमति
यह भी बताना जरूरी है कि एक माह पूर्व 24 मार्च को ममता ने कहा था कि लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज या सुमित्रा महाजन को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया जाता है तो वह समर्थन कर सकती हैं। हालांकि, इसके बाद उनका कोई बयान नहीं आया है। पिछले माह वह ओडिशा भी गईं जहां मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात की और क्षेत्रीय दलों को एकजुट होने की बात कही। पर, राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति को लेकर एक शब्द नहीं बोलीं।
कौन-कितने पानी में भांप रही हैं दीदी
दीदी दिल्ली पंचायत के विपक्षी दलों व भाजपा गठबंधन खेमे की पूरी स्थिति को परखने व समझने के बाद ही वह अपना रुख स्पष्ट करना चाहती हैं। सिर्फ ममता ही नहीं उनके दल के सभी नेता राष्ट्रपति चुनाव में किस ओर जाएंगे इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। सुश्री बनर्जी को भी पता है कि भाजपा नेतृत्व वाले राजग को अपना उम्मीदवार जीताने के लिए महज 18 हजार वोट ही कम है। क्योंकि, पांच राज्यों के चुनाव के बाद भाजपा गठबंधन के पास करीब 5.32 लाख वोट हो चुके हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार को जीतने के लिए करीब 5.50 लाख वोट चाहिए होता है। ऐसे में ममता भाजपा गठबंधन या विपक्षी खेमा चुनें, इसे लेकर असमंजस में हैं।
तृणमूल सांसदों के 2832 वोट भी हैं अहम
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों द्वारा बनाई जा रही रणनीति में भी लीकेज साफ दिख रही है। यह लीकेज मत विरोध या फिर समर्थन का नहीं है। बल्कि लीकेज पार्टी के भीतर और मुकदमों से पैदा हुआ है। अगर सिर्फ तृणमूल कांग्रेस की बात की जाए तो इस समय तृणमूल के चार सांसद ऐसे हैं जिनके वोट पर संशय है। रोजवैली चिटफंड घोटाले में तृणमूल के दो सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय व तापस पाल न्यायिक हिरासत में हैं। वहीं सारधा घोटाले में फंसे सांसद कुणाल घोष को तृणमूल से निलंबित कर दिया गया है। वे किस ओर वोट देंगे इसका कुछ पता नहीं है।
वहीं, तृणमूल के ही एक और सांसद केडी सिंह पर कोलकाता पुलिस में जालसाजी समेत कई मुकदमे दर्ज हैं और उनसे तृणमूल प्रमुख बहुत ही खफा हैं। ऐसे में वह भी शायद ही मतदान करने के लिए कोलकाता आएं। राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के वोट का मूल्य 708 होता है। ऐसी स्थिति में तृणमूल के चार सांसदों के 2832 वोट का क्या होगा? ऐसे लीकेज अन्य दलों में भी है। जैसे बंगाल में कांग्रेस व वाममोर्चा के कई विधायक तृणमूल में शामिल हो चुके हैं। उनके वोट अवश्य तृणमूल के पास है लेकिन उनके दो सांसदों का वोट किस ओर जाएगा इसका पता नहीं है। हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव में अभी वक्त है।
वहीं, सुदीप बंद्योपाध्याय की जमानत याचिका पर ओडिशा हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित रखा गया है। यदि जमानत मिल जाती है तो तब तो उनके दो सांसद मतदान कर पाएंगे और नहीं मिली तो फिर नहीं। यहां बताना आवश्यक है कि हर दल के लिए राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों व विधायकों का हर वोट अहम है। ऐसे में तृणमूल का तो 2832 वोट का सवाल है।