तृणमूल के लिए ऋण छोड़ गए मुकुल
जागरण संवाददाता, कोलकाता। कहा जाता है कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी अधिक दिनों तक नहीं चलती, इन द
जागरण संवाददाता, कोलकाता। कहा जाता है कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी अधिक दिनों तक नहीं चलती, इन दिनों कुछ ऐसा ही हो रहा है राज्य की राजनीति में। हाल के दिनों तक तृणमूल कांग्रेस के अहम कड़ी रहे मुकुल रॉय का जिस कदर पार्टी से मोह भंग हुआ उस कदर पार्टी ने भी उनसे किनारा कर लिया। अब जब कि रॉय पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार कर चुके हैं उन्होंने जाते-जाते पार्टी के समक्ष कई चुनौती भी खड़ी कर दी है। मसलन कल तक पार्टी की फंडिंग और लेन-देन का हिसाब रख रहे मुकुल की गैर मौजूदगी में अब निर्वाचन कमीशन के समक्ष इसका ब्योरा पार्टी को ही सौंपना होगा।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के बाद बीते साल पांच सितम्बर को मुकुल रॉय ने निर्वाचन कमीशन के समक्ष पार्टी की आय-व्यय का हिसाब प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार त्रिनेत्र कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी से पार्टी को 1.40 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ था। रॉय ने बीते महीने कमीशन को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया कि त्रिनेत्र से ली गई राशि अनुदान के रूप में मिली थी जिसे बाद में उक्त कंपनी ने वापस करने को कहा परिणामस्वरूप संशोधित जमा व खर्च को इस बार कर्ज के रूप में दिखाया गया।
गौरतलब है कि 30 जनवरी को मुकुल रॉय सीबीआइ के समक्ष पेश हुए थे। निर्वाचन आयोग को सौंपी गई दूसरी चिट्ठी की तारीख 10 फरवरी है तब मुकुल कागजी तौर पर तृकां के राष्ट्रीय महासचिव थे किन्तु पार्टी से उनका रिश्ता लगभग टूट गया था।
यह बात दीगर है कि भाजपा उक्त कंपनी की फंडिंग को ले कर तृणमूल को घेरती रही है। उधर बताया जाता है कि मुकुल इन दिनों भाजपा से करीबी रिश्ता बनाए हुए हैं ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या मुकुल ने यह पहले ही तय कर लिया था कि सीबीआइ के समक्ष पेश होने के बाद ही तृकां का दामन छोड़ते। पार्टी छोड़ने के साथ रॉय ने फंडिंग के फंडे को अपनाया जिसका जवाब अब पार्टी को देना होगा। समझा जा रहा है कि पार्टी फंडिंग का फांस तृणमूल के लिए नई मुसीबत पैदा कर सकता है।