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कड़वी यादों वाला रहा यात्रा सीजन

संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : गंगोत्री धाम की यात्रा भले ही शुक्रवार को औपचारिक रूप से खत्म हुई हो लेकिन

By Edited By: Published: Fri, 24 Oct 2014 06:46 PM (IST)Updated: Fri, 24 Oct 2014 06:46 PM (IST)

संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : गंगोत्री धाम की यात्रा भले ही शुक्रवार को औपचारिक रूप से खत्म हुई हो लेकिन यात्रा पड़ावों और गंगोत्री धाम में व्यापारियों की उम्मीदें अगस्त माह में ही टूट गई थी। यात्रियों से गुलजार रहने वाले यात्रा सीजन ने इस बार यात्रा पड़ावों से जुड़े व्यवसायियों को खून के आसू रूलाए।

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गंगोत्री में हर साल दुकान सजाने वाले अनीश सिंह इस बार बेहद परेशान हैं। उन्होंने कर्ज लेकर तीन लाख रुपये का सामान दुकान में भरा था। लेकिन सीजन इस कदर खराब रहा कि उन्हें एक लाख रुपये की बिक्री भी नहीं हो सकी। यही हाल गंगोत्री में व्यवसाय करने वाले तकरीबन सौ से भी ज्यादा व्यापारियों का है। अमूमन यात्रा सीजन की शुरूआत से अक्टूबर में सीजन खत्म होने तक गंगोत्री धाम का दो सौ मीटर से भी ज्यादा लंबाई तक फैला बाजार गुलजार रहता था। लेकिन इस बार गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के दौरान गंगोत्री धाम के पूरे बाजार में सन्नाटा छाया रहा। सभी दुकानों में ताले लटके हुए थे। इस बार सीजन की समाप्ति वैसे तो अगस्त महीने में ही हो चुकी थी लेकिन अक्टूबर अंत तक बस इसकी औपचारिक समाप्ति की कसर बाकी थी। गंगोत्री में दुकान लगाने वाले और कई दुकानों के स्वामी नरेश सेमवाल बताते हैं कि इस बार जिन दुकानदारों को दुकानें किराए में सौंपी थी, वे किराए भी नहीं चुका पाए, लिहाजा अगस्त महीने में ही दुकानों पर ताले लगाकर चलते बने। वे बताते हैं कि दुकान का किराया दस हजार रुपये से भी ज्यादा का बनता है, लेकिन इतना पैसा भी वह नहीं कमा पाए। व्यापारी प्यार सिंह का कहना है कि बीते साल आपदा ने यात्रा सीजन खट्टा किया। इस साल आपदा नहीं आई लेकिन पूरे सीजन में यात्रियों की आवाजाही न होने से सभी व्यापारियों को खून के आंसू रोने पड़े। लिहाजा अगस्त महीने में किराए की व्यवस्था न होते देख दुकानों, होटलों को बंद कर अपने गांव लौट गए। प्रमुख यात्रा पड़ाव गंगनानी, चढ़ेथी, धराली, झाला, सुक्की में सीजनल खुलने वाली दुकानों में लगे ताले बयां कर रहे हैं कि यहां दुकानें लंबे समय तक नहीं खुली। आखिरी दिन यात्रा पड़ावों में फैली मायूसी के बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह मायूसी अगस्त महीने से ही छा गई थी।

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