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मुखबा से कलेऊ संग दी गंगा को विदाई

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी अपने शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा से गंगा की डोली गंगोत्री रवाना हो गई

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Apr 2017 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 28 Apr 2017 01:00 AM (IST)
मुखबा से कलेऊ संग दी गंगा को विदाई
मुखबा से कलेऊ संग दी गंगा को विदाई

शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी

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अपने शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा से गंगा की डोली गंगोत्री रवाना हो गई है। गुरुवार प्रात: डोली को पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ सवा मन (50 किलो) का कलेऊ (स्थानीय पकवान) देकर विदा किया गया। मुखबा की महिलाओं ने गंगा को अश्रुपूर्ण नेत्रों से विदाई दी। आज शुभ मुहूर्त में गंगोत्री मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर गंगोत्री राजमार्ग पर स्थित धराली गांव से दो किमी की दूरी पर बसा है मां गंगा का शीतकालीन निवास स्थल मुखबा गांव। गंगोत्री धाम के तीर्थपुरोहितों के इस गांव में साढ़े चार सौ परिवार रहते हैं। यहां परंपरागत शिल्प से तैयार लकड़ी के मकान और ठंडी आबोहवा के बीच हरे-भरे जंगल आकर्षित करते हैं। गांव के बीचोंबीच गंगा का मंदिर स्थित है। गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाने के बाद शीतकाल के दौरान मां गंगा की भोगमूर्ति छह माह के लिए यहां स्थापित रहती है। शीतकाल में छह माह इसी मंदिर में गंगा के दर्शन किये जा सकते हैं। इन छह महीनों में मुखबा गांव का माहौल खुशियों भरा रहता है। कपाट खुलने पर पूरा गांव भव्य विदाई कार्यक्रम के साथ गंगा की भोगमूर्ति को लेकर गंगोत्री पहुंचता है। इसके लिए एक माह पहले से ही मुखबा में तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

शुक्रवार को अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री धाम के कपाट खोल दिए जाएंगे। गुरुवार को मुखबा से गंगा की डोली को विदा किया गया। श्रद्धालु गंगा को मां के रूप में पूजते हैं, वहीं मुखवा के लोग गंगा को बेटी की तरह गंगोत्री धाम के लिए विदा करते हैं। ग्रामीणों के लिए यह बहुत ही भावुक क्षण होता है। इस दौरान ऐसा प्रतीत होता है जैसे गांव के हर घर से बेटी की विदाई हो रही हो। क्षेत्र पंचायत सदस्य सुधा मार्तोलिया कहती हैं कि छह माह तक मुखबा में प्रवास के बाद ग्रामीण गंगा की डोली को बेटी की तरह गंगा जी को विदा करते हैं। विभिन्न पकवानों से कलेऊ बनाकर कंडी में डोली के साथ रखते हैं। इन पकवानों में चावल के आटे के अरसे, रोट व पूरी आदि रहती हैं। गंगा को विदा करने के लिए गांव की महिलाएं आधे रास्ते तक भी जाती है।


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