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सेब काश्तकारों को दवाओं का इंतजार

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : इस बार बेहतर बर्फबारी से जमीन को मिली नमी ने सेब उत्पादकों की उम्मीदें

By Edited By: Published: Tue, 24 Mar 2015 05:41 PM (IST)Updated: Tue, 24 Mar 2015 05:41 PM (IST)
सेब काश्तकारों को दवाओं का इंतजार

जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी : इस बार बेहतर बर्फबारी से जमीन को मिली नमी ने सेब उत्पादकों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। यही वजह है कि बर्फ पिघलने के बाद अधिकांश सेब उत्पादक क्षेत्रों में काश्तकारों ने बगीचों में मेहनत शुरू कर दी है। लेकिन, उद्यान विभाग की लापरवाही के चलते अभी काश्तकारों को दवाएं उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। समय पर दवाएं नहीं मिली तो बेहतर उत्पादन की उम्मीद टूटने की चिंता भी काश्तकारों को सता रही है।

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सूबे के प्रमुख सेब उत्पादक जिले में सेब के बगीचे विस्तार ले रहे हैं, लेकिन उनकी उत्पादकता नहीं बढ़ रही। इसका कारण समय पर काश्तकारों को दवाएं व जरूरी तकनीकी मदद उपलब्ध न होना है। इन दिनों अधिकांश सेब उत्पादक क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है। काश्तकारों ने बगीचों में पहुंचकर बगीचों की देखभाल शुरू कर दी है। शुरुआती दिनों में फ्लावरिंग शुरू होने से पहले पेड़ों पर डायथेन एम-45 स्प्रे किया जाता है, ताकि उसकी छाल कीटों से सुरक्षित रह सके। इसके साथ ही टूटे तनों पर पेस्ट किया जाता है। इससे पेड़ बीमारियों व कीटों से बचा रहता है। लेकिन, अभी तक जिले के किसी भी फल उत्पादक क्षेत्र में उद्यान विभाग की ओर से दवाएं नहीं पहुंच सकी हैं। इससे किसानों की चिंता बनी हुई है। जिले में सालाना 40 से पांच हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। इसमें उपला टकनौर, स्यौरी फल पट्टी, मोरी ब्लॉक के पर्वत व बंगाण क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सात हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सेब की खेती की जाती है। लेकिन, कहीं भी अभी उद्यान विभाग की ओर से दवाएं नहीं पहुंचाई जा सकी हैं। विभागीय लापरवाही के चलते हर साल करीब बीस फीसदी सेब की फसल खराब हो जाती है। ऐसी स्थिति में काश्तकारों को बाजार से महंगे दामों पर दवाएं खरीदने को मजबूर होना पड़ता है।

लंगूरों व बंदरों से परेशान किसान

टकनौर क्षेत्र के सेब उत्पादक बंदर व लंगूरों से आतंकित हैं। बर्फ पिघलने के बाद अब बंदरों और लंगूरों के झुंड अलग-अलग समय पर बगीचों का रुख कर रहे हैं। सेब के पेड़ों की छाल को छीलकर खाने की कोशिश में वे बगीचों को बुरी तरह तबाह कर देते हैं। काश्तकार माधव रावत, शैलेंद्र सिंह व रवि के मुताबिक यह समस्या करीब पांच सालों से लगातार बनी हुई है। काश्तकारों की मेहनत अब सेब के पेड़ों को बचाने में ही ज्यादा खर्च हो रही है।

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सेब की खेती को लेकर विभाग की तैयारियां पूरी हैं। सभी उत्पादक क्षेत्रों का जायजा लिया जा रहा है और जल्द ही मांग व जरूरत के अनुरूप दवाएं भेज दी जाएंगी।

सुरेश राम, जिला उद्यान अधिकारी


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