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मिटा दी गरीबी की रेखा

पुष्कर रावत, उत्तरकाशी डूण्डा ब्लाक के लदाड़ी गांव की भूमि कलूड़ा गरीबी से जूझते-जूझते हताश हो गई थ

By Edited By: Published: Thu, 15 Jan 2015 12:39 AM (IST)Updated: Thu, 15 Jan 2015 04:35 AM (IST)

पुष्कर रावत, उत्तरकाशी

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डूण्डा ब्लाक के लदाड़ी गांव की भूमि कलूड़ा गरीबी से जूझते-जूझते हताश हो गई थीं। मुट्ठी भर जमीन और गांव के जंगल की रखवाली करते पति की आय से परिवार की गुजर-बसर किसी चुनौती से कम नहीं था। दो बच्चों का भविष्य मुंह बाए सामने खड़ा था। वर्ष 2013 में वह गढ़ बाजार से जुड़ीं तो वक्त बदलना शुरू हुआ। उन्होंने गांव की ही सात महिलाओं के साथ ग्रामीणों से स्थानीय उत्पाद कोदा, झंगोरा और दालें खरीद उनकी पैकिंग कर गढ़ बाजार के जरिए बिक्री आरंभ की। भूमि कहती हैं 'प्रत्येक सोमवार को लगने वाली इस हाट से मैं और मेरी सखियां प्रतिमाह 10 से 12 हजार रुपये तक कमा लेते हैं।'

दरअसल, उत्तरकाशी के रामलीला मैदान पर हर सोमवार को लगने वाला गढ़ बाजार आज 15 गांवों के 50 परिवारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इस बाजार में स्थानीय उत्पाद ही बेचे जाते हैं। इस गढ़ बाजार को मूर्त रूप देने वाले किसान हैं डूण्डा ब्लाक के बागी गांव के द्वारिका प्रसाद सेमवाल। सेमवाल बताते हैं 'सक्षम लोग पहाड़ों से पलायन कर गए और जो रह गए उनमें से ज्यादातर गरीबी से अभिशप्त हैं।' वह बताते हैं कि सीमांत जिले में खेती व पशुपालन पर आधारित स्थानीय उत्पाद खुले बाजार में नजर नहीं आते। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण इलाकों में इनका उत्पादन करने वाले लोगों की कमजोर आर्थिकी व बाजार की जानकारी का अभाव है। ऐसे में उनके लिए बाजार की जरूरत थी। ऐसा बाजार जिससे उत्पादक को सीधा लाभ मिले। सेमवाल ने महिला स्वयं सहायता समूह को साथ लेकर हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान के नाम से एक संगठन बनाया। सदस्यों में आपस में सहयोग राशि जमा कर टेंट, टेबल, तराजू आदि खरीदे। इसके बाद आसपास के 15 गांवों से संपर्क साध उन्हें गढ़ बाजार में अपने उत्पाद बेचने के लिए आमंत्रित किया गया।

गढ़ बाजार में दालें और आलू बेचने वाले भैलूड़ा गांव के रामलाल बताते हैं कि एग्रो संस्थान की ओर से टेंट और तराजू निशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। वह बताते हैं अब आमदनी बढ़ गई है तो जीवनस्तर भी सुधरा है।

सेमवाल बताते हैं कि बाजार में मंडुए का आटा, पहाड़ी दालें, झंगोरा, सब्जियां, ¨रगाल से बने उत्पाद व सेब की चटनी, शहद और ऊनी वस्त्र जैसे उत्पाद हाथों हाथ लिए जा रहे हैं। बौन गांव निवासी गोविंद बिष्ट बाजार में परंपरागत तरीके से बने ऊनी कपड़ों का व्यवसाय करते हैं। वह बताते हैं 'मै बीते 13 सोमवार से इस बाजार में आ रहा हूं और अब तक डेढ़ लाख का कारोबार कर चुका हूं।'

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महिला समूह बनाता है यमुनोत्री का प्रसाद

उत्तरकाशी : स्थानीय किसान द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने सिर्फ गढ़ बाजार को ही मूर्तरूप नहीं दिया। इससे पहले वर्ष 2008 में लदाड़ी गांव की महिलाओं का समूह गठित किया और इसे नाम दिया आदिभोग। इस समूह ने चौलाई, मंडुआ व कुट्टू से लड्डू तैयार किए। इसे प्रसाद के रूप में यमुनोत्री धाम में वितरित किया गया। अब यह यमुनोत्री धाम में प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मंदिर समिति समेत श्रद्धालु भी प्रसाद के रूप में इसकी खरीद करते हैं।

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