ट्रॉली में झूलती रहेगी जिंदगी
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी : भटवाड़ी प्रखंड के स्यावा, डिडसारी, बायणा, लौंथ्रू के ग्रामीणों को फिलहाल आने वाले सालों में ट्रॉली पर झूलते हुए ही आवाजाही करनी पड़ेगी। यहां गांवों को जोड़ने वाले दो पुल बहने के बाद फिलहाल एक पुल के निर्माण की तैयारी चल रही है, लेकिन वह भी फिलहाल प्रस्तावों से आगे नहीं बढ़ सकी है। वहीं दूसरे पुल के निर्माण को लेकर फिलहाल प्रशासन स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
भागीरथी घाटी में वर्ष 2012 व 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आकर बहे स्यावा और डिडसारी झूला पुल के स्थान पर दूसरे पुल के निर्माण की संभावना फिलहाल दिख नहीं रही है। वर्ष 2013 जून में भागीरथी की बाढ़ की चपेट में आने से स्यावा गांव समेत डिडसारी, बायणा, लौंथ्रू को सड़क से जोड़ने वाले दो झूला पुल बह गए थे। स्यावा में लोनिवि और एक स्वयंसेवी संगठन की मदद से ट्रॉली लगाई गई थी। अभी यहीं ग्रामीणों की आवाजाही का एकमात्र साधन है। लेकिन, डिडसारी, बायणा, लौथ्रू के ग्रामीणों के हिस्से ना तो ट्रॉली आई ना ही आवाजाही के लिए कोई अन्य अस्थाई व्यवस्था। ऐसे में यहां के ग्रामीणों को मनेरी स्थित परियोजना बैराज के ऊपर से गुजर कर तकरीबन तीन किमी की दूरी तय कर गांव तक पहुंचना पड़ रहा है। यहां ग्रामीणों ने सर्दियों के दौरान भागीरथी नदी का जलस्तर कम होने पर अस्थाई व्यवस्था के तौर पर लकड़ी की कच्ची पुलिया तैयार की थी। जो मई महीने में भागीरथी नदी का जलस्तर बढ़ने के साथ बह गई। वहीं इन टूटे पुलों के निर्माण पर प्रशासन ने भी खामोशी साध कर ली है। फिलहाल यहां बहे दोनों पुलों में से एक के निर्माण के लिए कोशिशें तो चल रही हैं, लेकिन यह कोशिशें भी फिलहाल प्रस्ताव तक ही सीमित हैं। दूसरे पुल के निर्माण के लिए फिलहाल प्रशासन स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। ऐसे में प्रस्ताव से बजट स्वीकृति तक आने में काफी लंबा समय लग सकता है। ऐसे में इन ग्रामीणों को आने वाले समय में भी अस्थाई व्यवस्थाओं के सहारे ही उफनती भागीरथी को पार करना पड़ेगा।
डिडसारी और स्यावा में से एक पुल का प्रस्ताव फिलहाल यूडीआरपी के तहत रखा गया है। दूसरे पुल के निर्माण की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं। बजट मिलने पर इन पुलों का निर्माण तेज गति से शुरू कर दिया जाएगा।
सी. रविशंकर, जिलाधिकारी, उत्तरकाशी