प्रलय में तबाह हो गए मानती के सपने
खटीमा : जल प्रलय ने लोहियाहेड वासियों के संजोए सपनों को बिखेर दिए हैं। इस आपदा में किसी ने मेहनत की गाढ़ी कमाई से बनाया घर खोया तो किसी ने खून-पसीना से बोई हुई फसल। इस तबाही में मानती के साथ नियति को कुछ और ही मंजूर था। उसने अपने जीवन साथी के साथ-साथ पति की आखिरी निशानी भी खो दी है। जिस आशियाने में वह रहती थी, वह अब जमींदोज हो गया है। वह इस वियोग में मिटे हुए अस्तित्व को देखकर अपने पुराने दिन याद कर उसकी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे हैं।
रविवार की सुबह लोहियाहेड वासियों के लिए काला दिन बनकर आया। शारदा नहर ने सूरज कि किरण आने से पहले ही लोहियाहेड-चौड़ापानी के वाशिंदों के अरमानों को झकझोर कर रख दिया। जल प्रलय की इस बर्बादी में लोगों के संजोए हुए सपने भी दफन हो गए। खाने को दाना नहीं सिर छुपाने को छत नहीं है। ये हाल है खटीमा में आए जल प्रवाह प्रभावितों का। लोहियाहेड के रघुनंदन ने बताया कि तबाही के मंजर को उन्होंने करीब से देखा। हाल इस कदर थे कि मानो मौत छू कर निकल गई। उनका आशियाना कुछ ही देर में ढह गया। उनके इस घर में कई सपने सोचे थे। जो इस आपदा में दफन हो गए हैं। यहीं के खलील अहमद कहते हैं इस तबाही में परिवार के साथ ही उनकी जान के अलावा कुछ नहीं बचा है। लोहियाहेड की मानती के साथ नियति को कुछ और ही मंजूर था। इस बर्बादी में सबसे अधिक नुकसान मानती को हुआ है। उसका पति सादीलाल इस तबाही में बह गया। जिसमें उसकी मौत हो गई। यही नहीं जिस घर में वह दोनों रखते थे, वह मकान जमीदोंज होकर रेगिस्तान में तब्दील हो गया है। इस आशियाने में मानती का फ्रिज, कूलर, टेबिल फेन, चारपाई आदि सामन सहित जीवन साथी की आखिरी निशानी थी दफन हो गई। मानती रुधे गले से कहती है कि उसके पास पति की आखिरी निशानी भी नहीं है। अब वह उसी जगह पर जाकर रोती है जहां उसने कई बसंत बिताए थे।