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निगम ने गंवाया करोड़ों का भूखंड

By Edited By: Published: Sat, 23 Aug 2014 12:36 AM (IST)Updated: Sat, 23 Aug 2014 12:36 AM (IST)
निगम ने गंवाया करोड़ों का भूखंड

काशीपुर : पालिका कर्मचारियों ने करीब 25 साल पूर्व करोड़ों के भूखंड के रिकार्ड गायब करा दिए। जिसके चलते निगम प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में केस हारने बाद भूखंड को हाथ से गंवा बैठा है। हालंाकि निगम प्रशासन को उम्मीद की एक किरण आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल माहेश्वरी की जनहित याचिका से दिखाई दे रही है।

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दरअसल तहसील के पास हाथीखाना में निगम प्रशासन की खसरा नंबर 281 में 0.49 डिसमिल और 0.081 डिसमिल के दो प्लाट थे। इन प्लाटों को राजस्व कर्मियों की मिली भगत से वर्षो पूर्व रवि चावला और अन्य लोगों ने खुद के नाम करा लिया। इसकी पालिका प्रशासन को भनक भी नहीं लगी, या यूं कहे पालिका प्रशासन जानबूझकर अंजान बना रहा। काफी वर्षो बाद जब भूमि पर कब्जे की बात सामने आई तो पालिका प्रशासन ने न्यायालय में याचिका तो दायर कर दी। मगर भूमि के अभिलेखों को गायब कर दिया गया। आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल माहेश्वरी ने जब इस मामले में सूचना मांगी तो निगम प्रशासन में हड़कंप मच गया। इसके बाद आनन-फानन में अभिलेख गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई। इधर भूमि विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। यहां सुप्रीम कोर्ट ने अब निगम के खिलाफ फैसला दे दिया है। इससे शहर के बीचोबीच मौजूद करोड़ों रुपये की यह भूमि अब निगम प्रशासन के हाथ से निकल गई है।

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1984 में गायब हुए थे अभिलेख

= पालिका में जब जांच पड़ताल की गई तो पता चला कि यह अभिलेख 1984 तक पालिका के अभिलेखागार में मौजूद थे। इसके बाद इनका कहीं पता नहीं चल सका। मजेदार बात यह है कि अभिलेख गायब होने पर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ नोटिस तो जारी हुए, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यही नहीं इस बात का भी पता नहीं किया गया कि पालिका से यह कागजात गायब कैसे हुए।

माहेश्वरी खोज लाए रिकार्ड

काशीपुर : पालिका और नगर निगम प्रशासन जहां रिकार्ड रूम में अभिलेख नहीं होने की बात कहते रहे, वहीं दूसरी ओर समाजसेवी माहेश्वरी वर्षो पुराने रिकार्डो को खोजकर लाए हैं। इन रिकार्डो के मुताबिक यह भूमि म्यूनिसिपल बोर्ड काशीपुर के स्वामित्व में दर्शायी गई है। जिसे तनू सिंह के नाम के व्यक्ति से रामसहाय से खरीद दिखाई गई है। वहीं तनू सिंह ने खुद राजघराने का मुलाजिम होने के नाते भूमि का स्वामित्व दर्शाते हुए भूमि की बिक्री की है। यह रजिस्ट्री 70 के दशक में किए जाने की बात कही जा रही है।

== निगम प्रशासन भूमि बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गया, मगर पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं कर पाने की वजह से न्यायालय का फैसला हमारे खिलाफ गया है। प्लाट पर माहेश्वरी ने जनहित याचिका दायर की है। जिससे निगम को काफी उम्मीदें हैं।

= डा. आशीष श्रीवास्तव, एमएनए


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