सपने टूटे पर हौसले नहीं
किच्छा : जिंदगी जब उरुज (शिखर) पर थी तो सफलता एक के बाद एक कदम चूमती जा रही थी। देश की राजधानी के आब
किच्छा : जिंदगी जब उरुज (शिखर) पर थी तो सफलता एक के बाद एक कदम चूमती जा रही थी। देश की राजधानी के आबो हवा में पल बढ़ कर जूडो में प्रतिद्वंदियों को धूल चटा दी और सरकार ने भी देश सेवा का मौका दे दिया। तब एक हादसे ने सब कुछ छीन लिया। जिंदगी तो जैसे तैसे बच गई पर न नौकरी रहीं और जूडो के दांव चलाने की कूबत पर हौसले ने फिर से खड़ा किया। उसने फिर से अपनी जिंदगी के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी। अब फिर जूडो में दो-दो हाथ करने की तैयारी है।
नाम है संजय जोशी। वहीं संजय जिन्होंने 13 वर्ष की उम्र में जूडो सीखने के बाद शोहरत के नए आयाम लिख दिए। दक्षिण अफ्रीका में भारत का डंका बजा 2002 में विश्व के खिलाड़ियों को धूल चटा कांस्य पदक जीता था। भारत सरकार ने भी सम्मान देकर केंद्रीय सुरक्षा बल में नौकरी दे दी। अभी शोहरत की बुलंदियों को उन्होंने छूने का काम ही किया था कि अचानक एक सड़क हादसे ने उनके सपनों को रेत की तरह ढहा दिया। जिंदगी मानों ठहर सी गई। चिकित्सकों ने भी उसके पुन: अपने पैरों पर खड़ा होने की संभावना से इंकार कर दिया था। मूल रुप से किच्छा के चुकटी देवरिया निवासी संजय के पिता चक्रधर जोशी ने भी हार नहीं मानी। संजय ने भी पिता को निराश नहीं किया। हौसला उसका न पहले कम था और न अब। एक बार फिर उसने पिता की मदद से जूडो के दांव खेल प्रतिद्वंदियों से दो-दो हाथ करने के लिए अपने आपको तैयार कर लिया। उत्तराखंड के खेल विभाग ने भी उसका साथ दिया। पिछले छह माह से वह कोच के रुप में उत्तराखंड के लिए जूडो के खिलाड़ी तैयार कर रहा है। चुकटी देवरिया के मैदान से उत्तराखंड का नाम रोशन करने के लिए स्टेडियम कोच के तौर पर खिलाड़ियों को तपा कर कुंदन बनाने का काम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीते दिनों देहरादून में उत्तराखंड के खिलाड़ियों को सम्मानित किया तो उसमें संजय भी था। गांव में खुशी की लहर फैल गई। सम्मान हासिल कर मुख्यमंत्री से मिली प्रेरणा से संजय नई मुहिम में जुट गए। उन्होंने आगे खुद भी खेलने का मन बना लिया है। क्षेत्र की जनता को उनके पुन: मैदान में उतरने का इंतजार है। जिस दिन वह पदक लेकर लौटेगा उस दिन संजय के साथ क्षेत्र की जनता का भी सीना फर्क से चौड़ा हो जाएगा।