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रामलीला मैदान को लेकर 'महाभारत' खत्म

By Edited By: Published: Thu, 01 Aug 2013 01:15 AM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2013 01:15 AM (IST)
रामलीला मैदान को लेकर 'महाभारत' खत्म

नवीन सिंह देउपा, काशीपुर

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शहर के बीचों बीच स्थित रामलीला मैदान पर मालिकाना हक को लेकर चली आ रही 'महाभारत' फिलहाल खत्म हो गई है। राजस्व परिषद न्यायालय ने रामलीला कमेटी व सांसद केसी सिंह बाबा के बीच चल रहे वाद में एसडीएम के फैसले को निरस्त करते हुए बाबा के पक्ष में फैसला सुनाया है। राजस्व अभिलेखों में रामलीला मैदान पर मालिकाना हक अब सांसद बाबा के नाम रहेगा।

वर्षो पहले सांसद बाबा के पिता राजा हरिश्चंद्र राज सिंह ने रामनगर रोड पर स्थित भूखंड पर रामलीला मंचन की लोगों को इजाजत दी थी। जबकि भूमि का स्वामित्व अपने पास ही रखा था। तभी से यहां हर साल रामलीला होती है। इसी वजह से अब भूखंड को रामलीला मैदान के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1997 में रामलीला कमेटी के एक सदस्य ने अपने नाम से कुछ दुकानों का नक्शा पास कराया था।

इसकी भनक लगने पर सांसद बाबा ने पड़ताल कराई तो पता चला कि 1413 फसली के खाते में गाटा संख्या 170 पर प्रबंधक रामलीला कमेटी अंकित किया गया है। इसी तरह 1368 फसली में भी ऐसा ही किया गया था। राजस्व अभिलेखों में यह बदलाव किसी भी सक्षम अधिकारी या न्यायालय के आदेश के बगैर हुआ था।

सांसद बाबा ने एसडीएम के यहां वाद दायर कर बताया कि आराजी खसरा संख्या 170 रक्बा 0.450 हेक्टेयर व गाटा संख्या 173/2 रक्बा 0.790 हेक्टेयर (कुल आराजी 1.247 हेक्टेयर) के मालिक पूर्व में राजा हरिश्चंद्र राज सिंह थे। उनकी मृत्यु के बाद वारिसान उनकी पत्नी रानी पदमावती व पुत्र कुंवर करन चंद्र राज सिंह (केसी सिंह बाबा) के नाम दर्ज है। रानी पदमावती की मृत्यु के बाद एकमात्र मालिक सांसद केसी सिंह बाबा बने। वही भूमि के निगरानीकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि हल्का पटवारी ने बिना किसी अधिकार या फिर किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के बगैर अभिलेखों में जमीन प्रबंधक रामलीला कमेटी के नाम दर्ज कर की है।

सुनवाई के दौरान एसडीएम ने तहसीलदार की रिपोर्ट का अवलोकन करने पर पाया कि खतौनी 1367 फसली में खसरा नं.313 रक्वा 2.06 एकड़ भूमि श्रेणी 15(2) रामलीला मैदान के रूप में दर्ज थी। 1368 फसली में उक्त भूमि नए खसरा नं.170 रक्वई 1.11 एकड़ एवं 173ब रक्वई 1.67 एकड़ (कुल 2.78 एकड़) भूमि प्रबंधक रामलीला कमेटी के नाम दर्ज कर दी गई। माल अभिलेखों में इस प्रविष्टि परिवर्तन का आदेश किसी न्यायालय या सक्षम स्तर से होना विदित नहीं है। 27 सितंबर 2010 को आदेश पारित करते हुए तत्कालीन एसडीएम ने कहा कि यह प्रविष्टि बंदोबस्त के दौरान हुई है। दीर्घकालीन प्रविष्टि होने के कारण इसे धारा 33/39 भूराजस्व के अंतर्गत दुरुस्त नहीं किया जा सकता है। इस आधार पर प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है।

फैसले के खिलाफ सांसद बाबा राजस्व परिषद में गए। सुनवाई के बाद 27 जुलाई को फैसला सुनाते हुए परिषद के सदस्य (न्यायिक) एएस नयाल ने कहा कि अवर न्यायालय का आदेश त्रुटिपूर्ण पाए जाने के कारण उसे निरस्त किया जाता है। साथ ही अवर न्यायालय को त्रुटि को संशोधित करने को कहा है। फैसले से राजस्व अभिलेखों में रामलीला मैदान की भूमि केसी सिंह बाबा के नाम दर्ज होने का रास्ता साफ हो गया है।

दीर्घकाल का आधार बेबुनियाद

सुनवाई के दौरान राजस्व परिषद के सदस्य (न्यायिक) एएस नयाल ने कहा कि यदि अभिलेख में कभी भी कोई त्रुटि पाई जाती है तो उसे मात्र इस आधार पर बरकरार नहीं रखा जा सकता है कि वह दीर्घकाल से चली आ रही है। इसलिए जब भी त्रुटि संज्ञान में आए उसे दुरुस्त किया जा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि यह स्थान रामलीला के प्रयोजन के लिए सुरक्षित है। तथ्यों के आधार पर अवर न्यायालय का आदेश निरस्त करने योग्य है।

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