मजबूरी में छोड़ रहे जन्मभूमि
जागरण प्रतिनिधि, चम्बा : विकास के बड़े-बड़े दावे, लेकिन कई गांवों में विकास की किरण तक नहीं है। मजबूर होकर उस भूमि को छोड़ना पड़ रहा है, जहां जन्म लिया और बचपन गुजारा। ये कहानी नहीं, हकीकत है। खुरेत और पुजाल्डी जैसे गांवों को देख कर तो यही लगता है। विकास के लिए लोग यहां से पलायन करने को मजबूर हैं। गांव की आधा से ज्यादा आबादी अन्यत्र पलायन कर गई है।
प्रखंड चंबा के सीमांत गांव पुजाल्डी और खुरेत की स्थिति यह है कि यहां बुनियादी सुविधाओं का ही टोटा है। इस कारण पिछले कुछ वर्षो में गांव से भारी मात्रा में पलायन हुआ है। यहां के आधा से ज्यादा परिवार सुविधाजनक जगहों पर बस गए हैं। खुरेत के लोग काणाताल और चंबा पलायन कर गए हैं। पुजाल्डी के लोग बुंरासखंडा, कद्दूखाल आदि जगहों पर बस गए हैं। गांव में आधी से कम आबादी ही रह गई है। गांव में वहीं लोग रह गए हैं जो आर्थिक हालात के कारण पलायन नहीं कर सकते हैं। दोनों गांव में लगभग 400 परिवारों में मुश्किल से दो सौ परिवार भी गांव में नहीं बचे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर गांव में खेती और पशुपालन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन अन्य सुविधाएं न मिल पाने के कारण पलायन एक बड़ी समस्या है। गांव के लोगों का कहना है कि उन्हें केवल सड़क की सुविधा मिल जाए, बाकी समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाएगा। गांव से सड़क छह से आठ किमी दूर है। क्षेत्र पंचायत सदस्य सुचेता डबराल, नरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि लोग गांव में रहना तो चाहते है, लेकिन सुविधाएं तो होनी ही चाहिए। उनका कहना है कि विकास के मामले में गांव की उपेक्षा की जा रही है। जिस दिन गांव तक सड़क पहुंच गई, उस दिन एक भी परिवार पलायन नहीं करेगा।
पलायन रोकना पहली प्राथमिकता
इस मामले को लेकर क्षेत्रीय विधायक दिनेश धनै का कहना है पलायन रोकना ही उनकी प्राथमिकता है। पुजाल्डी और खुरेत गांव को यातायात सुविधा से जोड़ने के लिए सड़क स्वीकृत करा दी गई है, जिस पर जल्द कार्रवाई होगी।
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