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समीर रतूड़ी का अनशन समाप्त

संवाद सूत्र, कीर्तिनगर : आखिरकार छह जून से चल रहे ग्रामीणों के संघर्ष की जीत हुई। मलेथा में दोनों क्

By Edited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 06:13 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 06:13 PM (IST)
समीर रतूड़ी का अनशन समाप्त

संवाद सूत्र, कीर्तिनगर : आखिरकार छह जून से चल रहे ग्रामीणों के संघर्ष की जीत हुई। मलेथा में दोनों क्रशरों के निरस्तीकरण के संशोधित आदेश के बाद तीस दिन के बाद अनशनकारी समीर रतूड़ी ने अनशन समाप्त कर दिया। साथ ही समीर के समर्थन में सात दिनों से अनशन पर बैठी महिलाओं को एसडीएम ने जूस पिलाकर उनका अनशन तुड़वाया। इसके बाद वे माधव सिंह भंडारी की प्रतिमा पर गए और पूजा-अर्चना के बाद धरना भी समाप्त कर दिया है।

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रविवार सुबह ग्यारह बजे सरकार से निरस्तीकरण के आदेश लेकर जैसे ही एसडीएम कीर्तिनगर दीपेंद्र नेगी अनशन स्थल पर पहुंचे आंदोलनकारियों में खुशी की लहर दौड़ गई। सबसे पहले आदेश को अनशनकारी समीर रतूड़ी को दिखाया गया। इसके बाद आंदोलनकारी देव सिंह नेगी ने अनशन स्थल पर आयोजित सभा में दोनों क्रशरों के निरस्तीकरण के आदेश को पढ़कर सुनाया। सबसे पहले एसडीएम दीपेंद्र नेगी ने जूस पिलाकर समीर रतूड़ी के समर्थन में अनशन पर बैठी आठ महिलाओं को जूस पिलाकर उनका अनशन समाप्त करवाया। इसके बाद दो बजे आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले दिनेश भट्ट ने समीर रतूड़ी को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाया।

ढोल नगाड़ों संग मनाई खुशी

निरस्तीकरण के आदेश सुनने के बाद ग्रामीणों ने ढोल नगाड़ों के साथ अपनी खुशी का इजहार किया। आंदोलनकारियों ने इसे ग्रामीणों के लंबे संघर्ष की जीत बताया। इस मौके पर पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष श्रीनगर कृष्णानंद मैठाणी, पर्यावरण से जुड़े विनोद जुगलान, पूर्व प्रमुख मगन सिंह बिष्ट, अरविंद दरमोड़ा, प्रधान शूरवीर बिष्ट, दलपत राम तिवाड़ी, हेमवंती देवी, नंदा देवी, जगदंबा रतूड़ी आदि मौजूद रहे।

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क्रशरों की स्वीकृति के लिए शासन स्तर पर अधिकारियों की जो कमेटी बनाई गई उसमें जन प्रतिनिधियों को भी रखा जाना चाहिए। साथ ही इस तरह के मामलों पर जन सुनवाई भी होनी चाहिए।

भरत झुनझुनवाला, स्तंभकार

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ग्यारह माह चला आंदोलन

क्रशर के विरोध में ग्यारह माह तक आंदोलन चलने के बाद आंदोलनकारियों को यह सफलता मिली है। पहले मलेथा में क्रशरों के विरोध में धरना शुरू किया गया। इसके बाद क्रमिक अनशन ने धरने की जगह ले ली। आंदोलन की सफलता में महिलाओं की अहम भूमिका रही। आंदोलन के तहत ग्रामीणों पर मुकदमें भी दर्ज हुए हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और डटे रहे। इसका नतीजा है कि आज उन्हें सफलता मिली है।


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