छिलका के सहारे रात काटने को मजबूर ग्रामीण
संवाद सूत्र, घनसाली: प्रदेश सरकार प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने का भले ही लाख दावे करती हो लेकिन जमीन
संवाद सूत्र, घनसाली: प्रदेश सरकार प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने का भले ही लाख दावे करती हो लेकिन जमीनी हकीकत ठीक उलट है। हाल यह है कि आजादी के 66 साल बाद भी भिलंगना विकास खंड के आधा दर्जन गांवों में बिजली नहीं पहुंच पाई है। ग्रामीणों को छिलका के सहारे रात काटनी पड़ रही है। यही नहीं सरकार ने वर्ष 2006-07 में कोटी-झाला जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू कराया था लेकिन यह सात साल बाद भी नहीं बन सकी है।
प्रखंड के छह सीमांत गांव पिनस्वाण, उरणी, कोटी, झाला, मेढ़ और मरवाड़ी के ग्रामीण सरकार और ऊर्जा निगम से बिजली की मांग कर रहे हैं लेकिन सुनवाई नहीं हो रही। सरकार ने वर्ष 2006-2007 में इन गांवों के लिए जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करवाया लेकिन उरेडा अधिकारियों की लापरवाही के कारण परियोजना सफल नहीं हो सकी। हाल यह है कि उरेडा कोटी-झाला में 250 किलोवाट की जलविद्युत परियोजना के निर्माण में 2 करोड़ 74 लाख रूपये खर्च कर चुका है लेकिन आज तक गांव को बिजली नहीं मिल पाई है। ऐसा ही पिनस्वाड़ गांव के लिए उरेडा ने आठ साल पूर्व 1.55 करोड़ रुपये की लागत से 50 किलोवाट की योजना का निर्माण शुरू हुआ लेकिन यह योजना भी लापरवाही की भेंट चढ़ गई। इस आधी-अधूरी योजना का खामियाजा आधा दर्जन गांवों के पांच हजार से अधिक लोगों को भुगतना पड़ रहा है। बिजली के लिए मेढ़ गांव में लोगों ने उरेडा के खिलाफ दस दिन तक भूखहड़ताल भी की लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। विभागीय अधिकारी इस ओर ध्यान देने की जहमत नहीं उठा रहे।
क्षेत्रीय ग्रामीण भगवान सिंह, प्रेम सिंह और राकेश प्रसाद आदि लोगों का कहना है कि उक्त योजना को वर्ष 2011 में पूरा किया जाना था लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण आज तक परियोजनाओं का कार्य पूरा नहीं हो सका है। इससे लोगों को आज भी छिलका के सहारे रात काटनी पड़ रही है।
परियोजना को बनाने में तकनीकी सहयोग तथा उरेडा से धन नहीं दिया जा रहा है, जिसके कारण परियोजनाएं अधर में लटकी हैं।
मालचंद बिष्ट, अध्यक्ष, कोटी-झाला जलविद्युत परियोजना