आपदा ने छीनी मत्स्य पालकों की आजीविका
जागरण प्रतिनिधि, नई टिहरी: आपदा ने मत्स्यपालकों की भी आजीविका छीनी है। इसके कारण मत्स्यपालक आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। विभाग के पास इस तरह की कोई योजना नहीं है, जिससे वे फिर रोजगार से जुड़ सकें।
जिले में आपदा की मार मत्स्यपालकों पर भी पड़ी है। आपदा से उनके तालाब क्षतिग्रस्त हो गए थे। इससे मत्स्यपालन बंद हो गया। जौनपुर, चंबा, प्रतापनगर, भिलंगना, नरेंद्रनगर के करीब एक दर्जन ग्रामीण मत्स्यपालन से जुड़े थे। इससे उनकी अच्छी आय हो रही थी। विभाग ने तीन वर्ष पूर्व उनके मछली पालने के लिए तालाब बनवाये थे। वह भी आपदा की भेंट चढ़ गए। तब से वे बेरोजगार हैं, लेकिन आपदा के पांच माह बाद भी किसी ने उनकी सुध नहीं ली। उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वे नये तालाब बना सकें और विभाग ने भी तालाबों की मरम्मत करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। विभाग का स्पष्ट कहना है कि उनके पास मरम्मत के लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है। चंबा के रघुवीर सिंह रावत, प्रतापनगर के राजेंद्र सिंह राणा आदि मत्स्यपालक ों का कहना है कि मत्स्यपालन आर्थिकी का जरिया था, लेकिन आपदा ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। विभाग उनकी मदद करने को तैयार नहीं है।
पुराने तालाबों की मरम्मत के लिए विभाग के पास कोई बजट का प्रावधान नहीं है। इसलिए आपदा से प्रभावित हुए मत्स्यपालकों की मदद करना विभाग के लिए संभव नहीं है।
प्रतिभा बिष्ट, प्रभारी जिला मत्स्य निरीक्षक
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