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केदारनाथ आपदाः देवलीभणी में 33 का उजड़ा था सिंदूर, नहीं भरे जख्म

आपदा पीड़ितों के जख्म अब भी हरे हैं। केदारघाटी के ऊखीमठ ब्लाक स्थितदेवलीभणी ग्राम में आज भी आपदा पीड़ितों की आंखों में आंसू हैं।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 16 Jun 2017 12:30 PM (IST)Updated: Fri, 16 Jun 2017 05:15 PM (IST)
केदारनाथ आपदाः देवलीभणी में 33 का उजड़ा था सिंदूर, नहीं भरे जख्म
केदारनाथ आपदाः देवलीभणी में 33 का उजड़ा था सिंदूर, नहीं भरे जख्म

रुद्रप्रयाग, [बृजेश भट्ट]: केदारनाथ यात्रा भले ही पटरी पर लौट आई हो, आपदा पीड़ितों के जख्म अब भी हरे हैं। केदारघाटी के ऊखीमठ ब्लाक स्थितदेवलीभणी ग्राम में आज भी आपदा पीड़ितों की आंखों में आंसू हैं। यह वही गांव है, जहां सर्वाधिक 54 लोगों को त्रासदी लील गई थी। 33 महिलाओं का सिंदूर उजड़ गया और कई मांओं की गोद सूनी हो गई थी। लेकिन, इन चार सालों में जिम्मेदारों का ध्यान सिर्फ यात्रा को व्यवस्थित करने पर ही रहा। नतीजा, आपदा पीडि़त चार साल बाद भी कुछ संस्थाओं के रहमोकरम पर जीने को मजबूर हैं।

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देवलीभणी ग्राम के अधिकांश लोग केदारधाम में पुरोहिताई का कार्य करते थे। आपदा ने उनकी जिंदगी ही नहीं छीनी, परिवारों को भी चौराहे पर ला खड़ा कर दिया। लगभग 150 परिवारों वाले इस गांव में यूं तो हर परिवार आपदा पीडि़त है, लेकिन 54 परिवारों का तो आपदा ने सहारा भी छीन लिया। 

हैरत देखिए कि धीरे-धीरे सरकार भी गांव को भूल गई। हालांकि, स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से गांव में कंप्यूटर, सिलाई-बुनाई का निश्शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन इससे महिलाएं घर की जरूरतें ही पूरा कर पाती हैं। ऐसे में यह प्रशिक्षण रोजगार से नहीं जुड़ पाया।

पति को खो चुकी 38 वर्षीय रीता देवी कहती हैं, आपदा ने उनके परिवार को अनाथ कर दिया, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। रोजगार के लिए सिलाई का प्रशिक्षण लिया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ संस्थाओं की ओर से प्रतिमाह जो धनराशि दी जाती  है, उसी से जैसे-तैसे घर की गुजर चल रही है। 

इसी तरह 28 वर्षीय पूनम देवी कहती हैं कि सरकार ने अहेतुक धनराशि के साथ ही पांच लाख रुपये की मदद तो की, लेकिन स्वरोजगार का कोई जरिया मुहैया नहीं कराया। ऐसे में बच्चों के भविष्य की चिंता खाए जा रही है।

सांसद ने लिया था गांव को गोद

आपदा में सर्वाधिक प्रभावित देवलीभणी ग्राम गढ़वाल सांसद भुवनचंद्र खंडूड़ी ने गोद लिया था। इसके बाद गांव तक सड़क पहुंच गई है और पर्यटन विभाग की ओर से गांव में सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा है। जबकि, मंदाकिनी महिला बुनकर समिति की ओर से निराश्रित महिलाओं बुनकरी का निश्शुल्क प्रशिक्षण देने के साथ ही प्रति पीड़ित परिवार एक हजार रुपये की मासिक पेन्शन भी दी जाती है। 

इसी तरह जलागम की ओर से पांच आपदा पीड़ित परिवारों को टेंट उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें वह अपना छोटा-मोटा रोजगार कर रहे हैं। लेकिन, आपदा पीडि़तों के लिए कोई ठोस व्यवस्था अब तक भी नहीं हो पाई है।

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