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भक्तों के बीच आते हैं भगवान

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: पंचकेदारों की उत्सव डोली यात्रा पौराणिक होने के साथ-साथ लोगों की भावनाओं

By Edited By: Published: Wed, 06 May 2015 04:47 PM (IST)Updated: Thu, 07 May 2015 04:38 AM (IST)
भक्तों के बीच आते हैं भगवान

संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: पंचकेदारों की उत्सव डोली यात्रा पौराणिक होने के साथ-साथ लोगों की भावनाओं से भी जुड़ी हुई है। छह माह तक भगवान से बिछुड़ने का दर्द यहां के लोगों में होता है, और जब डोली छह माह बाद फिर से शीतकाल प्रवास के लिए वापस आती है तो उस समय पूरे क्षेत्र में खुशी का माहौल रहता है। लोग भगवान को अपने बीच पाकर काफी खुश होते हैं।

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हर वर्ष भगवान केदारनाथ, द्वितीय केदार तुंगनाथ और तृतीय केदार मदमहेश्वर छह माह उच्च हिमालय में स्थित अपने मंदिरों में विराजमान रहते हैं, वहीं शीतकाल के छह माह शीतकालीन गद्दीस्थल पर ही निवास करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। कपाट खुलने व बंद होते समय उत्सव डोली के माध्यम से भगवान अपने गद्दीस्थल पहुंचते हैं। यह यात्रा ही उत्सव डोली यात्रा कहलाती है।

शीतकाल के छह माह केदारनाथ समेत अन्य पंचकेदार यहां के ग्रामीणों के बीच रहते हैं। लोग पूरी भावनाओं से नित पूजा कर बाबा के दर्शन करते हैं। अपने बीच भगवान को पाकर लोग काफी खुश रहते हैं। शीतकाल के बाद पौराणिक परंपराओं के अनुसार ग्रीष्मकाल में भगवान के कैलाश रवाना होने पर यहां के ग्रामीणों के दिल में बिछुड़ने का गम होता है। नम आंखों से लोग भगवान को छह माह के लिए विदा करते हैं।

ग्रीष्मकाल के बाद शीतकाल में भगवान के वापस अपने गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर आने के दौरान पूरे क्षेत्र में भारी उत्साह रहता है। मद्मदेश्वर भगवान के आने पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन भी खुशी के तौर पर किया जाता है। यहां के ग्रामीण भगवान को अपने बीच पाकर काफी खुश होते हैं। यह पूरी परंपरा यहां के लोगों के दिलों से जुड़ी हुई है।

सदियों से चली आ रही इस धार्मिक यात्रा के प्रति मंदिर समिति व सरकार को ज्यादा विकसित नहीं कर पाई है। तीन से चार दिन चलने वाली इस ऐतिहासिक यात्रा में स्थानीय लोग ही मुख्य रूप से शामिल होते रहे हैं। देश विदेश से आने वाले यात्री केदारनाथ में दर्शनों को तो बड़ी संख्या में आते हैं लेकिन उत्सव डोली यात्रा में कम संख्या में शामिल होती है। यह यात्राएं पैदल ही होती हैं। पड़ाव स्थल बनाए गए हैं। इन्हीं पड़ावों में रात्रि विश्राम के बाद पैदल ही उत्सव डोली भक्तों के साथ कैलाश पहुंचती है।

केदारनाथ के तीर्थपुरोहित शंकर बगवाड़ी कहते हैं कि इस पौराणिक यात्रा को भी धार्मिक पर्यटन के दृष्टिगत विकसित किया जाना चाहिए, ताकि यात्रा में अधिक से अधिक देश विदेश के यात्री पहुंचे। यह ऐतिहासिक यात्रा है। वहीं मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह कहते हैं कि पंचकेदारों की उत्सव डोली यात्रा पौराणिक है। सदियों से चली आ रही इस यात्रा के प्रचार प्रसार के लिए मंदिर समिति समय-समय पर प्रचार करती रहती है।

केदारनाथ उत्सव डोली यात्रा

ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से केदारनाथ, तीन पड़ाव- 60 किलोमीटर

मदमहेश्वर उत्सव डोली यात्रा

ओंकारेश्वर मंदिर से मदमहेश्वर, तीन पड़ाव-38 किलोमीटर

तुंगनाथ उत्सव डोली यात्रा

मक्कू मठ से तुंगनाथ मंदिर, तीन पड़ाव-19 किलोमीटर


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