हिमपात निगल गया मालभोग
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ : जिले की नेपाल सीमा से लगे काली नदी घाटी क्षेत्र में विशेष प्रजाति का मालभ
ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ :
जिले की नेपाल सीमा से लगे काली नदी घाटी क्षेत्र में विशेष प्रजाति का मालभोग केला मौसम का शिकार हो गया है। वर्ष 1982 में घाटी तक हुए हिमपात के बाद संकट में आया मालभोग केला 2014 के हिमपात से लुप्त हो गया है। काली नदी घाटी में इसके कुछ पेड़ तो बचे हैं परंतु फल लगने बंद हो चुके हैं।
मालभोग केला पिथौरागढ़ जिले के काली नदी घाटी में उत्पादित होने वाला विशेष प्रजाति का केला था। मात्र अंगुली भर लंबे इस केले का छिलका कागज जैसा पतला होता था। इस केले का स्वाद और सुगंध लाजवाब होती थी। पका हुआ केला कई दिनों तक रखा जा सकता था। केला उत्पादक घर पर खुशबू के लिए पका केला रखे रहते थे। जिसकी सुगंध घर सहित बाहर तक फैली रहती थी। केला उत्पादक क्षेत्र में आज भी मालभोग केले का नाम लेते ही लोगों की जुबान पर पानी भर आता है।
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इन क्षेत्रों में होता था मालभोग केला
पिथौरागढ़: काली नदी घाटी में तहसील डीडीहाट के कटाल, सांवलीसेरा, थाम, गर्जिया, कूटा, जमतड़ी, तल्लाबगड़ सहित पिथौरागढ़ तहसील के काली सहित अन्य नदी घाटी के कई गांवों और गंगोलीहाट के पोखरी से निचले स्थानो पर उत्पादन होता था। समान तापमान और समान ऊंचाई के बाद भी घाटी के सभी गांवों में इसका उत्पादन नहीं हो पाता था। जिन स्थानों पर इसक ा उत्पादन होता था वहां तक शीतकाल में भी बर्फ नहीं गिरती थी। गर्मियों में इन स्थानों में दिन का औसत न्यूनतम तापमान 20 से 25 और अधिकतम तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस रहता है।
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1982 से आने लगी गिरावट
पिथौरागढ़: वर्ष 1982 में छह मार्च को पहाड़ में भारी हिमपात हुआ था। इस दौरान नदी घाटियों तक हिमपात हुआ था। मालभोग केला उत्पादक क्षेत्र तक बर्फ गिरी थी। इसी के साथ गिरावट आने लगी थी। जनवरी 1995 और जनवरी 2014 में भी भारी हिमपात के चलते उत्पादन तो दूर रहा केले के पेड़ भी नष्ट हो चुके हैं। अस्कोट के थाम गांव में केले के एक दो पेड़ हैं परंतु तीन वर्षों से इनमें फल आने बंद हो चुके हैं। केला उत्पादक कमान सिंह धामी बताते हैं कि इसकी जानकारी विभाग को भी दी थी परंतु किसी ने भी शिकायत को सुना तक नहीं है। कमान धामी का कहना है कि मालभोग केले के पेड़ तो बचाए परंतु इनमें फल के लिए भी कई प्रयास किए गए। अब फल लगने बंद हो चुके हैं। वह कहते हैं वर्ष 1982 में ही यदि प्रयास किए जाते तो मालभोग केला बचाया जा सकता था।