आधा दर्जन ग्राम पंचायतों में फिर आपदा जैसे हालात
धारचूला : जून 2013 की आपदा से सर्वाधिक प्रभावित तहसील के तल्ला मल्ला दारमा की आधा दर्जन ग्राम पंचायत
धारचूला : जून 2013 की आपदा से सर्वाधिक प्रभावित तहसील के तल्ला मल्ला दारमा की आधा दर्जन ग्राम पंचायतों में एक बार फिर आपदा जैसे हालात पैदा हो गए हैं। इन गांवों की बिजली, पानी, संचार सेवाएं तो भंग हैं, पैदल रास्ते भी क्षतिग्रस्त होने से गांवों के करीब चार सौ परिवार बुरे दौर से गुजर रहे हैं।
वर्ष 2013 की आपदा से तल्ला और मल्ला जोहार का संधिस्थल सर्वाधिक प्रभावित रहा था। सोबला जैसी बस्ती नक्शे से गायब हो गई थी। एक वर्ष दो माह बाद इस क्षेत्र तक सड़क संपर्क बहाल हो सका था। आपदा से देश, जहान से कटे इन गांवों के ग्रामीणों ने 50 रुपये किलो नमक, सौ रुपये किलो मोटा चावल खाकर दिन गुजारे थे। शासन-प्रशासन ने सवा साल बाद इस क्षेत्र तक एक बार मार्ग खोलकर अपनी पीठ तो खुद थपथपाई। इसके बाद क्षेत्र की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई।
तल्ला मल्ला दारमा के सुवा, न्यू, खेत, दर, उमचिया और बौंगलिंग ग्राम पंचायतों में जनजीवन अस्तव्यस्त है। धौली नदी सहित उसकी सहायक नदियों ने इन गांवों का भूगोल बदला है। आधा दर्जन ग्राम पंचायतों के अंतर्गत आने वाले एक दर्जन के आसपास के तोक गांवों में अभी भी जून 2013 की आपदा के मंजर डरा रहे हैं। गांवों तक फौरी तौर पर बहाल की गई बिजली नदारत है। पीने का पानी नहीं है। आपदा से क्षतिग्रस्त पेयजल लाइनों में पानी नहीं आ रहा है। संचार की सुविधा इन गांवों तक संचार क्रांति में भी नहीं पहुंच सकी हैं। ग्रामीणों के गांवों से बाहर जाने वाले रास्ते चलने योग्य नहीं हैं। इन मार्गाें पर पैदल चलने के लिए मजबूत दिल की जरूरत है। टूटे फूटे मात्र तीन से छह इंच तक बचे चौड़े इन पैदल रास्तों के किनारे सैकड़ों मीटर गहरी खाइयां हैं। सबसे गंभीर बात तो यह है कि सबसे अधिक खतरे में आए इन गांवों की सुरक्षा के लिए सरकार अभी तक कोई कदम नहीं उठाई है।
क्षेत्र की जिला पंचायत सदस्य इंद्रा देवी और क्षेत्र पंचायत सदस्य रुकुम सिंह बिष्ट बताते हैं कि प्रशासन जहां तक सड़क है, वहीं तक आपदा मान रहा है। क्षेत्र के कमल सिंह नेगी, एनएस दरियाल, अरविंद सिंह, धाना देवी कहती हैं कि उनकी वेदना सुनने वाला कोई नहीं है। शब्दों के मलहम तो सभी लगाते हैं, करता कोई नहीं है। अब नेताओं और अधिकारियों के सांत्वना के शब्द जहर की तरह कलेजे को चीरते हैं।
गांवों के अन्य ग्रामीण भी शासन, प्रशासन और नेताओं पर दोमुंहा होने का आरोप लगा रहे हैं। सभी का कहना है कि 10 नवंबर तक उनकी सुध नहीं ली गई तो उसके बाद आपदा प्रबंधन के सच को आंदोलन के माध्यम के दुनिया के सामने रखा जाएगा।