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2020 तक ¨पजड़ा लगाने की न पड़े जरूरत

जागरण संवाददाता, पौड़ी: खिर्सू में गढ़वाल वन प्रभाग के तत्वावधान में मानव एवं वन्य जीवों पर आधारित का

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Jun 2017 08:04 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jun 2017 08:04 PM (IST)
2020 तक ¨पजड़ा लगाने की न पड़े जरूरत
2020 तक ¨पजड़ा लगाने की न पड़े जरूरत

जागरण संवाददाता, पौड़ी: खिर्सू में गढ़वाल वन प्रभाग के तत्वावधान में मानव एवं वन्य जीवों पर आधारित कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों ने कहा कि गुलदार मानवीय परिवेश के इर्द-गिर्द रहने वाला जानवर है, जंगल में उसके लिए आसानी से भोजन उपलब्ध हो इसके लिए मानव को भी सोचना चाहिए, ऐसा होने पर 2020 तक ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में इस खौफ को समाप्त कर ¨पजड़ा लगाने की प्रथा को समाप्त किया जा सकता है।

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गुरुवार को वन विश्राम गृह खिर्सू में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। इसमें विषय विशेषज्ञों ने वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए जागरुकता को अहम बताया। इस दौरान नासिक से आए वन विभाग के सुनील वाड़ेकर ने वन्य जीव और मानव के बीच होने वाले संघर्ष और इससे बचाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बताया गया कि गुलदार सरल स्वभाव का होता है तथा उसे आसान शिकार चाहिए। उन्होंने वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए जागरुक रहने के साथ ही स्वयं को बचाव की मुद्रा बताई। कार्यशाला में यह बात भी सामने आई कि गुलदार का अपना एक निश्चित दायरा होता है। इतना ही नहीं कई बार वह बीस घंटे तक भी सो सकता है, लेकिन हल्की सी आहट पर वह जाग भी जाता है। ऐसी जानकारी होने पर भी उस क्षेत्र में अनावश्यक दोहन कई बार ¨चता का कारण बन जाता है। महाराष्ट्र से आए शैलेश देवरिया ने कहा कि गुलदार भी धरती का प्राणी है और वह भी आबादी के नजदीक के जंगलों में रहता है। ये सब जानते हुए भी हमें जागरुक रहना चाहिए। तितली संस्था से आए संजय सौड़ी ने भी वन्य जीव और मानव के बीच की दूरी को कम करने के लिए सामंजस्य बना कर कार्य करने पर जोर दिया। गढ़वाल वन प्रभाग के डीएफओ रमेश चंद्रा ने कहा कि प्रशिक्षण कार्यशाला के बाद क्विक रिस्पांस टीम इस दिशा में कार्य करेगी। कार्यशाला का समापन शुक्रवार को होगा। इस मौके पर नागदेव रेंज वनक्षेत्राधिकारी आशीष डिमरी, बायोलॉजिस्ट विद्या आत्रे, राजेश भटट, एके भट्ट, रश्मि ध्यानी, दिनेश जोशी, रजनीश लोहनी, पर¨वद्र, शिशुपाल ¨सह सहित कई वन कर्मी मौजूद थे।


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