फाइलों में सिमट गया गांवों का विस्थापन
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: बरसात शुरू होने से पूर्व खुली भूस्खलन से प्रभावित गांवों के विस्थापन से स
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: बरसात शुरू होने से पूर्व खुली भूस्खलन से प्रभावित गांवों के विस्थापन से संबंधित फाइल एक बार फिर कागजी खानापूर्ति कर बंद हो गई है। इसी के साथ लंबे समय से विस्थापन की बाट जोह रहे ग्रामीणों में मायूसी छा गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब ग्रामीणों की उम्मीदें टूटी हों। शासन-प्रशासन की ओर से प्रतिवर्ष विस्थापन के लिए फाइलें तो खोली जाती हैं। मगर बात कागजी कार्रवाई तक ही सिमट कर रह जाती है।
कोटद्वार तहसील क्षेत्र के सात गांवों के 121 परिवार 70 के दशक से विस्थापन की बाट जोह रहे हैं। प्रतिवर्ष बरसात से पूर्व शासन से इन गांवों के विस्थापन के संबंध में पत्रावलियां तलब की जाती है व जब तक पत्रावलियां शासन में पहुंचती है, बरसात बीत चुकी होती है। परिणाम शासन में बैठे अधिकारी रिपोर्ट को फाइलों में चस्पा कर किनारे कर देते हैं।
इन गावों का होना है विस्थापन
गांव प्रभावित परिवार प्रस्तावित विस्थापन
पु¨लडा 81 पापीडांडा खाम
कटपाणी 02 कटपाणी
स्यालकंडी 02 कीमूसेरा
सिमल्या 01 सिमल्याखाल
मवासा 10 स्यालडंगी, घाकगैर
दऊ 21 खलेक, पटखोली
बडरौ 04 मथगांव
हर बार फंस रहा पेच
भूस्खलन का दंश झेल रहे सात गांवों में से मात्र पु¨लडा गांव का ही जियोलॉजिकल सर्वे कराया गया है। पहले वर्ष 1996 व उसके बाद वर्ष 2006 में भू-वैज्ञानिकों की टीम ने सर्वे कर गांव को अन्यत्र विस्थापित करने की संस्तुति शासन से की। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। गांव के विस्थापन को लैंसडौन वन प्रभाग की लालढांग रेंज के पापीडांडा खाम को चिह्नित किया गया। मगर वन कानूनों के चलते गांव विस्थापित नहीं हो पा रह है।
शासन की ओर से विस्थापन के संबंध में जो भी रिपोर्ट मांगी जाती हैं, उन्हें भिजवा दिया जाता है। शासन से निर्देश जारी होते ही विस्थापन की कवायद शुरू कर दी जाएगी।
चंद्रशेखर भट्ट, डीएम, पौड़ी गढ़वाल