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जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करता है हिमालय

By Edited By: Published: Fri, 05 Sep 2014 12:59 AM (IST)Updated: Fri, 05 Sep 2014 12:59 AM (IST)

जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: हिमालय में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता प्रबंधन विषय को लेकर गढ़वाल विश्वविद्यालय के व्यापार प्रबन्धन विभाग में आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए विषय विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को हिमालय नियंत्रित करता है। इसलिए हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण और जैव विविधता का संरक्षण और संव‌र्द्धन जरूरी है।

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वक्ता इस बात पर भी एकमत थे कि पर्वतीय राज्यों की महिलाओं की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। लकड़ी, पानी और घास के लिए उन्हें आज भी कई-कई किमी की पैदल दूरी नापनी पड़ती है। कार्यशाला के मुख्य वक्ता और भारतीय वन्य जीव संस्थान के विशेषज्ञ डॉ. प्रणव पाल ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में आजीविका का मुख्य आधार अभी भी प्राकृतिक संसाधन ही हैं, लेकिन जल, जंगल जमीन पर स्थानीय लोगों का अधिकार नहीं रह गया है। भूमिहीन होने के कारण अधिकांश लोग पलायन करते हैं। शाश्वत धाम लक्षमोली के संस्थापक स्वामी अद्वैतानंद जी महाराज ने आध्यात्मिक और पर्यावरण पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि आध्यात्म का आधार भी शुद्ध पर्यावरण ही है।

गढ़वाल विवि व्यापार प्रबन्धन विभाग के संकाय अध्यक्ष प्रो. एसके गुप्ता ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण और संव‌र्द्धन को लेकर स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कार्य करने की जरूरत है। पर्वतीय विकास शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंद दरमोड़ा ने कहा कि प्राकृतिक संपदा पर स्थानीय जनता का भी अधिकार होना चाहिए। व्यापार प्रबन्ध विभाग के डॉ. अखिलेश पांडे ने कहा कि जून 2013 में आयी भयंकर प्राकृतिक आपदा से स्पष्ट हो जाता है कि जरूरत से ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप प्रकृति सहन नहीं करती है। प्रकृति में आ रहे उग्र बदलाव का उत्तरदायी स्वयं मानव ही है। डॉ. प्रदीप ममगांई, डॉ. विनोद देवी ने भी विचार व्यक्त किए।


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