सेवा बांड के औचित्य पर उठे सवाल
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: श्रीनगर व हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेजों में 15 हजार रुपये वार्षिक शुल्क पर एमबीबीएस की पढ़ाई की सुविधा सरकार ने उपलब्ध कराई। जिन मेडिकल छात्रों ने सरकार के इस नियम के तहत एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने पांच साल तक पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में सेवा करने का बांड भरा था, लेकिन अब इस बांड के औचित्य पर सवाल उठने लगे हैं।
दरअसल, श्रीनगर व हल्द्वानी कॉलेज के प्रथम दो-दो बैच के 47 डॉक्टरों को बांड की सेवा शर्तो के अनुसार पौड़ी जिले के विभिन्न अस्पतालों में तैनाती मिली थी। इनमें से केवल 16 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। शेष डाक्टर गत फरवरी-मार्च में ड्यूटी ज्वाइन करते ही गायब हो गए। सीएमओ पौड़ी डॉ. एके सिंह का कहना है कि गायब हुए 31 डॉक्टरों का वेतन रोक दिया है। उनके गायब होने की सूचना प्रतिमाह शासन को दी जाती है। सरकार ने बहुत कम शिक्षण शुल्क पर मेडिकल छात्रों को एमबीबीएस करने की सुविधा इसलिए दी थी कि पहाड़ के दुर्गम व अतिदुर्गम स्थलों पर डॉक्टर तैनात हो सकें। सरकारी छूट का फायदा उठाते हुए छात्रों ने एमबीबीएस की डिग्री तो प्राप्त कर ली, लेकिन सेवा शर्तो को ठेंगा दिखाते हुए ड्यूटी स्थल से नदारद हो गए। सरकार ने एमबीबीएस का शिक्षण शुल्क 15 हजार से बढ़ाकर 40 हजार वार्षिक व पांच साल के बजाय तीन साल पहाड़ में सेवा की शर्त रखी है। सीएमओ पौड़ी डॉ. एके सिंह ने बताया कि गायब डॉक्टरों की सूचना प्रतिमाह स्वास्थ्य महानिदेशालय को भेजी जाती है। बांड की सेवा शर्तो का उल्लंघन करने के मामले पर शासन स्तर से ही निर्णय और कार्रवाई होनी है।