सिल्क में फिसल रही गरीबी
संवाद सहयोगी, कोटद्वार: पर्वतीय क्षेत्रों में वन्य जीवों से फसल क्षति के बढ़ते मामलों से परेशान पर्वतीय क्षेत्र के काश्तकारों के लिए केंद्रीय सिल्क बोर्ड की कलस्टर प्रोग्राम योजना संजीवनी साबित हो रही है। योजना के शुरूआती दो वर्ष में ही रेशम उत्पादन के सुखद नतीजे सामने आने लगे हैं। इससे न सिर्फ काश्तकारों की आर्थिकी मजबूत हुई है, बल्कि रेशम पौधरोपण करने से उन्हें वन्य जीवों के फसल क्षति के आतंक से भी निजात मिल रही है।
केंद्रीय सिल्क बोर्ड की सहभागिता के चलते रेशम कीट पालन के प्रति उदासीन काश्तकारों का रवैया बदल रहा है। दरअसल, राज्य सरकार की उपेक्षा के चलते काश्तकारों में रेशम कीट उत्पादन के जागरूकता तो दूर, विभाग के अपने केंद्रों में भी उत्पादन घट रहा था, लेकिन वर्ष 2011 में केंद्रीय सिल्क बोर्ड की कलस्टर डेवलपमेंट योजना शुरू होने के बाद काश्तकार रेशम उत्पादन के प्रति प्रोत्साहित हो रहे हैं। योजना का ही असर है कि पौड़ी कलस्टर में सीएसबी दो वर्ष में सैकड़ों काश्तकारों को योजना से जोड़ न सिर्फ एक लाख बीस हजार शहतूत की पौध रोपण हो चुका है, बल्कि काश्तकारों की मेहनत भी रंग लाने लगी है। योजना के तहत यमकेश्वर व ढौटियाल क्षेत्र में करीब 12 कुंतल कोया का उत्पादन किया जा चुका है। वहीं, रेशम विभाग के शिवपुर व झंडीचौड़ फार्म में भी 150 कुंतल का इजाफा हुआ है। रेशम कीट उत्पादन में सबसे अहम बात यह है कि इससे जहां काश्तकार अच्छी खासी कमाई शुरू करने लगे हैं, वहीं उन्हें फसल क्षति की चिंता से भी निजात मिल गई है।
यह है सीडीपी योजना
केंद्रीय सिल्क बोर्ड (सीएसबी) ने वर्ष 2011 में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम (सीडीपी) शुरू किया। इसके तहत केंद्र की ओर से कीटपालन भवन निर्माण के लिए 68 हजार की धनराशि दी जाती है, अब तक यमकेश्वर क्षेत्र के 113 काश्तकारों को यह राशि दी जा चुकी है। साथ ही प्रति काश्तकार 300 रेशम के पौधे व बीज प्रदान किया जाता है, जिसके तहत सवा लाख शहतूत का पौधरोपण किया जा चुका है।
उत्पादन की स्थिति (किग्रा में)
स्थान 2011 2012 2013
शिवपुर 444 449 544
झंडीचौड़ 500 600 700
यमकेश्वर -- 500 700
ढौंटियाल -- 400 500
गत दो वर्ष में जुड़े काश्तकारों की स्थिति
स्थान काश्तकार
झंडीचौड़ 40
यमकेश्वर 313
रामड़ी 100
पुलिंडा 100
ढौटियाल 150
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'काश्तकार सीडीपी योजना के प्रति उत्साहित हैं, अब तक 400 काश्तकारों के जरिए सवा लाख शहतूत के पौधे रोपे जा चुके हैं। आगामी तीन वर्षो में काश्तकारों की मेहनत धरातल पर दिखने लगेगी। डॉ.एमएन धस्माना, वैज्ञानिक, केंद्रीय सिल्क बोर्ड।