'शिक्षा' पर कसा वन कानून का शिकंजा
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: चौंकिएगा नहीं यदि भविष्य में जीव विज्ञान का कोई विद्यार्थी मेंढक को देख हैरत में पड़ जाए व इस जीव के बारे में आपसे पूछने लगे? दरअसल, वन कानूनों की मार के चलते अब जीव विज्ञान की प्रायोगिक शिक्षा के किताबों तक सिमटने के आसार पैदा हो गए हैं। वन महकमा जीव विज्ञान प्रयोगशालाओं में दशकों पूर्व रखे मृत जीवों के जीवाश्मों को न सिर्फ कब्जे में लेने की तैयारी में है, बल्कि विद्यालय प्रशासन के विरुद्ध कार्रवाई की तैयारी में भी है।
विकास कार्यो के बाद अब शिक्षा में भी वन कानून रोड़ा बनने लगे हैं। दरअसल, वन महकमे ने जीव विज्ञान प्रयोगशालाओं में जीवाश्म रखने पर पाबंदी लगा दी है। 12 जुलाई 2013 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक (वन्य जीव) की ओर से जारी पत्र का हवाला देते हुए महकमा यह कार्रवाई कर रहा है। अतिरिक्त महानिदेशक (वन्य जीव) की ओर से जारी पत्र में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 2003 में हुए संशोधनों का हवाला देते हुए अधिनियम के शेड्यूल प्रथम व शेड्यूल द्वितीय में वर्णित जीवाश्मों को आवास/प्रयोगशालाओं में रखने की अनुमति प्राप्त करने के निर्देश दिए गए थे। अनुमति 15 अक्टूबर 2013 से पूर्व प्राप्त करनी थी। इसे विभागीय लापरवाही कहा जाए कि विभाग ने विद्यालय को उक्त पत्र की प्रतिलिपि जारी करना मुनासिब नहीं समझा। नतीजा, राज्य के विभिन्न विद्यालयों में रखे जीवाश्म अब विद्यालय प्रशासन के गले की हड्डी बन गए हैं।
आरटीआइ से जगा विभाग
केंद्र सरकार के पत्र को फाइलों में दबा कर बैठे वन महकमे की नींद तब खुली, जब आरटीआइ कार्यकर्ता ने उक्त पत्र के आधार पर की गई कार्रवाई का ब्योरा वन महकमे से मांगा। हैरानी की बात तो यह है कि आरटीआइ कार्यकर्ता के लिए ब्योरा एकत्र करने के दौरान भी विभाग ने विद्यालय प्रशासन को पूरे प्रकरण की भनक नहीं लगने दी व गुपचुप तरीके से उनकी लैबों में रखे जीवाश्मों की सूची प्राप्त कर उच्चाधिकारियों को भेज दी। मामला पे तूल पकड़ा तो विभागीय अधिकारी विद्यालय प्रशासन के विरुद्ध जीवाश्म रखने के आरोप में मामला दर्ज करने की धमकी देते रहे हैं।
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विषय की गहन जानकारी के लिए प्रायोगिक शिक्षा बेहद आवश्यक है। प्रयोगशालाओं में यदि जीवाश्म ही नहीं रहेंगे तो बच्चों से जीव विज्ञान में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी होगा। डॉ. कुमकुम रौतेला, विभागाध्यक्ष, जीव विज्ञान, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोटद्वार
मामला शासन स्तर का है। इसलिए उच्चाधिकारियों को पत्र प्रेषित कर मामले में हस्तक्षेप के लिए लिखा गया है। अलबत्ता, लैब से जीवाश्म हटाने का सीधा प्रभाव प्रायोगिक शिक्षा पर पड़ेगा।
कुलदीप गैरोला, मुख्य शिक्षा अधिकारी, पौड़ी
विद्यालय भवन के लिए खतरा बने एक जर्जर पेड़ को काटने की अनुमति तो वन महकमा दे नहीं रहा है। दशकों पूर्व खरीदे जीवाश्मों के मामले में मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी दे रहा है। विभाग का अव्यावहारिक निर्णय समझ से परे है। वीरेंद्र सिंह रावत, प्रधानाचार्य, राइंका, दुगड्डा
मामला पीसीसीएफ स्तर का है। शिक्षा महकमे के अधिकारियों को पीसीसीएफ से वार्ता करने को कहा गया है। पीसीसीएफ की ओर से जारी निर्देशों के आधार पर ही अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।
नितेशमणि त्रिपाठी, प्रभागीय वनाधिकारी, लैंसडौन वन प्रभाग