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पर्यावरण की सुचिता संस्कृति की देन

By Edited By: Published: Thu, 27 Mar 2014 05:42 PM (IST)Updated: Thu, 27 Mar 2014 05:42 PM (IST)
पर्यावरण की सुचिता संस्कृति की देन

संवाद सहयोगी, पौड़ी: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर में आयोजित गोष्ठी में संस्कृत भाषा के महत्व व पर्यावरण विज्ञान में उसकी प्रासंगिकता पर रोशनी डाली गई। वक्ताओं ने कहा कि पर्यावरण की सुचिता हमारी संस्कृति की ही देन है।

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गुरुवार को संस्कृत विभाग की पहल पर आयोजित राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी में संपूर्णानंद संस्कृत विवि वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। उन्होंने पर्यावरण की वैज्ञानिकता व मौजूदा स्थिति में उसकी प्रासंगिकता पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि प्रकृति के संसाधन मानव समाज के लिए वरदान हैं। जरूरत के अनुरूप ही इनका दोहन होना चाहिए। अनावश्यक दबाव से नुकसान उठाना पड़ सकता है। कुदरत की नेमतों का उपयोग सिर्फ मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही होना चाहिए। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो. टीपी पंत ने कहा कि पर्यावरण की सुचिता हमारी संस्कृति की ही देन है। इसे स्वच्छ रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस मौके पर संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. जेके गोदियाल, लखनऊ विवि के प्रो. रामसुमेर यादव, डीएवी पीजी देहरादून की डॉ. सविता शर्मा, डॉ. कुसुम डोबरियाल, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, बीएचयू के प्रो. बीएस शुक्ला आदि ने विचार रखे। संचालन प्रो. अनूप डोबरियाल ने किया। संगोष्ठी में शोध छात्रों ने भी प्रतिभाग किया।


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