Himalayan Echoes 2019 पुष्पेश पंत ने कहा, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और आपातकाल पर क्यों नहीं होता सवाल
नैनीताल में कुमाऊं फेस्टिवल ऑफ लिटरेचर एंड आर्ट्स संस्था के आयोजन हिमालयन इकोज में शामिल लेखकों ने देश में अभिव्यक्ति की आजादी न होने का आरोप लगाने वालों की सोच पर उठाए सवाल।
नैनीताल, जेएनएन : नैनीताल में कुमाऊं फेस्टिवल ऑफ लिटरेचर एंड आर्ट्स संस्था के आयोजन हिमालयन इकोज में शामिल होने पहुंचे रचनाकारों ने देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने के बुद्धिजीवी वर्ग के एक तबके की सोच पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार व लेखक प्रो. पुष्पेश पंत का कहना है कि भारतीय समाज में ही अभिव्यक्ति की आजादी कभी नहीं रही। उन्होंने 1975 के आपातकाल का जिक्र करते हुए सवाल उठाया कि जब लोगों की धरपकड़ कर नसबंदी कर दी गई तथा जब कश्मीर में पंडितों का नरसंहार हो रहा था, जब श्रीलंका संकट में जबरन भारतीय सेना भेजी गई, तब यह सवाल उठाने वाले कहां थे। उन्होंने कश्मीर में 370 व 35ए के खात्मे की प्रक्रिया को सही ठहराते हुए कहा कि खुद के हितों पर चोट होते देखने वाले ही इसका विरोध कर रहे हैं। दृढ़ता से कहा कि कश्मीर में तुष्टिकरण का असर लंबे समय तक बना रहेगा, कश्मीर घाटी में जल्द हालात सामान्य होने के आसार नहीं हैं।
शनिवार को प्रसादा भवन में हुई बातचीत में प्रो. पंत ने कहा कि साहित्य लिखा जाता है, बोला जाता है, साथ ही जोड़ा कि प्रतिभा ही नहीं है तो प्रोत्साहन कैसा। प्रो. पंत ने कहा कि डिजिटल दौर में किसी कहानी या कविता की दो पंक्तियां भी घर-घर पहुंच रही हैं। उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट होना नकारते हुए माना कि इसमें कटौती जरूर हो रही है। कहा कि यह दौर पहले भी देखा है और आगे भी चलता रहेगा।
प्रकृति की उपेक्षा चिंताजनक
प्रसिद्ध लेखक स्टीफन अल्टर का कहना है कि प्रकृति को लेकर आम जनमानस में चेतना का कम होने से ही पर्यावरण का नाश हो रहा है। उन्होंने कहा कि बांध, सड़क निर्माण, बढ़ती आबादी के साथ ही दावानल को हिमालय के लिए बड़ा खतरा बताया। उन्होंने उत्तराखंड में सेंचुरी के संरक्षण पर जोर देते हुए प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण स्कूली पाठ्यक्रमों का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। खुद के अनुभव बताते हुए कहा कि अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भेड़ बकरियां कम मिलती हैं। तमाम वन्य जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। मसूरी माउंटेन फेस्टिवल के संस्थापक निदेशक स्टीफन की किताब वायल्ड हिमालया की हिमालयन इकोज पर चर्चा हुई।
संस्कृति, खानपान, सोच में बदलाव ही जैव विविधता को बचाएगा
मध्य प्रदेश के इंदौर के चिकित्सक दंपती डॉ. अजय सोडानी व उनकी डॉक्टर पत्नी डॉ. अर्पणा 2001 से हिमालय के 35 ट्रैक में यात्रा कर चुके हैं। उन्हें हिमालय की गहरी समझ है। लद्दाख से लेकर गंगोत्री, गौमुख की पैदल यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की संस्कृति, खानपान, सोच में बदलाव ही जैव विविधता को बचाएगा। हिमालयन इकोज में पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ. अजय ने कहा 2001 से पहले शहरी होने के नाते आधे जमाने को अज्ञानी समझता था मगर हिमालय की अकूत प्राकृतिक संपदा, हिमालय क्षेत्र के लोगों के स्वभाव, बर्ताव देखकर महसूस किया कि शहरी मानस अधूरा है। कहा कि गौमुख ग्लेशियर स्थानीय लोग पांच किमी पीछे खिसकना बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृति, खानपान, सोच में बदलाव ही जैव विविधता को बचाएगा।
कहां है अभिव्यक्ति की आजादी
उर्दू लेखक सैफ महमूद के अनुसार मगल सल्तनत के दौर में दिल्ली उर्दू तहजीब व शायरी का गढ़ बन गया था। उन्होंने मौजूदा दौर मेें अभिव्यक्ति की आजादी के रहनुमाओं की चुप्पी पर हैरानी जताते हुए कहा कि आजकल किसी की आलोचना करना या असहमति जताना भी देशद्रोह की श्रेणी में गिना जा रहा है।
हिंदी माध्यम स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत
अल्मोड़ा की मूल निवासी व बाल साहित्य पर 50 से अधिक किताबें लिख चुकी लेखिका दीपा अग्रवाल की नई किताब महान सर्वेयर पंडित नैन सिंह की यात्राओं पर आधारित है। दीपा के अनुसार पंडित नैन सिंह के पास साहस, प्रतिभा, ज्ञान का भंडार था। उन्होंने नैन सिंह की डायरी के अलग से प्रकाशन पर जोर दिया। नैनीताल पहुंची लेखिका दीपा ने बातचीत में कहा कि हिंदी माध्यम के स्कूलों में बच्चों के पाठ्यक्रम बदलाव की जरूरत है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आजकल पाठ्यक्रमों में साहित्य को पूरी तरह हटा दिया गया। शिक्षा नीति बनाने वाले साहित्य से अंजान हैं। उन्होंने कहा कि नई सोच से लेखन कर ही समाज में सांप्रदायिक सद्भाव की भावना पैदा होगी। उन्होंने कहा कि मोबाइल, आइपैड आदि की वजह से बच्चों में लेखन को लेकर रूचि घट रही है। कहा कि लेखन भावना को कनेक्ट करता है। हैरानी जताई कि हर कोई मैकेनिकल बनता जा रहा है।
जंक फूड से बिगड़ रहा हेल्थ सिस्टम
वेस्टर्न हिमालया गाइड पुस्तक की लेखक व फूड क्रिटिक मरियम रेशी का कहना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मार्केटिंग में बच्चों को फोकस करने से नई पीढ़ी का हेल्थ सिस्टम गड़बड़ा रहा है। इससे बीमारियां पैदा हो रही हैं। उन्होंने समाज में एकाकी जीवन जीने की बढ़ती सोच को भी चिंताजनक करार दिया। मरियम नैनीताल के सैंट मैरी कॉलेज में पढ़ी है। जबकि शादी कश्मीर में हुई है। उन्होंने कश्मीर में धारा-370 खत्म करने के सवाल पर कहा कि सरकार को कश्मीरियों को बातचीत के लिए राउंड टेबल पर बुलाना चाहिए। सरकार के कश्मीर में निवेश इत्यादि से बेहतर भविष्य होने के दावे पर कहा कि कल किसने देखा है।