जिम कार्बेट नेशनल पार्क ने पूरा किया 81 साल का सफर, जानिए इसका इतिहास
विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट नेशनल पार्क मंगलवार को 81 साल का सफर पूरा करने के बाद 82 वें साल में प्रवेश कर रहा है।
रामनगर, [जेएनएन]: वन्यजीव संरक्षण के लिए पूरी दुनियां में अपने नाम का परचम फहरा रहा विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट नेशनल पार्क मंगलवार को 81 साल का सफर पूरा करने के बाद 82 वें साल में प्रवेश कर रहा है।
एशिया के गिने चुने बाघ अभ्यारण्य में से एक कॉर्बेट पार्क के जंगल की सुरक्षा का जिम्मा वन विभाग ने 149 साल पहले ही सम्हाल लिया था। यदि कार्बेट पार्क के इतिहास पर गौर करें तो सन 1800 तक यह क्षेत्र टिहरी के नरेश की निजी संपत्ति था। गोरखाओं के आक्रमण के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने टिहरी नरेश की मदद की। जिसकी एवज में यह क्षेत्र टिहरी नरेश ने अंग्रजो को सौंप दिया।
सन 1858 तक इस वन क्षेत्र में अंग्रेजों का अधिपत्य रहा। तब यहां शिकार करने के लिए गोरी हुकुमत से अनुमति लेना आवश्यक होता था। जब जंगलों का दोहन बढ़ता गया तब 1858 में इसको बचाने की कवायद शुरू की गयी। तब वन सरंक्षण परियोजना को अमली जामा पहनाया गया और 1868 में पहली बार इस क्षेत्र के संरक्षण का जिम्मा वन विभाग को सौंप दिया गया। यह क्षेत्र 1879 में आरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
सन 1934 में तत्कालीन गर्वनर सर विलियम हेली ने इस क्षेत्र को वन्य जीवों के लिए संरक्षित जाने की वकालत की थी। प्रख्यात शिकारी एवं बाद के जीवन में वन्यजीवों के संक्षरणकर्ता बने जिम एडवर्ड कार्बेट को इसकी सीमाओं का निर्धारण कि ए जाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
8 अगस्त 1936 को यूनाइटेड प्रोविंस नेशलन पार्क एक्ट के तहत यह हैली नेशनल पार्क के रूप में भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान बना। उसके बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया। इस क्षेत्र के लोगों को आदमखोर बाघ से मुक्ति दिलाने वाले जिम एडवर्ड कार्बेट का 1955 में निधन होने के बाद 1956 में उनकी याद में इस पार्क का नाम राममगंगा नेशनल पार्क से बदल कर जिम कार्बेट नेशनल पार्क रख दिया गया।
धीरे धीरे हुआ सीमा विस्तार
शुरूआती दिनों में कार्बेट पार्क का क्षेत्र फल 323.75 वर्ग किमी था। 1966 में इसका क्षेत्रफल 520.82 वर्ग किमी. किया गया। अब इसका क्षेत्र फल 1288.32 वर्ग किमी है।
वन्यजीवों की है बहुतायत
सीटीआर में इस समय 208 बाघ, 1100 हाथी, लगभग 35 हजार हिरन के अलावा भालू, सांभर, गुलदार, पांडा आदि वन्य जीवों के अलावा मगरमच्छ, घड़ियाल तथा छह सौ से अधिक प्रजातियों के पक्षी भी यहां मौजूद हैं।
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