69 साल बाद भारत आई जिम कॉर्बेट की बंदूक
प्रख्यात शिकारी एडवर्ड जिम कॉर्बेट की बंदूक 69 साल बाद भारत लाई गई है। इसे लेकर बंदूक निर्माता कंपनी जॉन रिगबी के मालिक मार्क न्यूटन और साइमन कार्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी पहुंचे। इसी बंदूक से कार्बेट ने रुद्रप्रयाग के नरभक्षी का अंत किया था।
विनोद पपनै, रामनगर (नैनीताल)। प्रख्यात शिकारी एडवर्ड जिम कॉर्बेट की बंदूक 69 साल बाद भारत लाई गई है। इसे लेकर बंदूक निर्माता कंपनी जॉन रिगबी के मालिक मार्क न्यूटन और साइमन कार्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी पहुंचे। इसी बंदूक से कार्बेट ने रुद्रप्रयाग के नरभक्षी का अंत किया था। कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक समीर सिन्हा ने बताया कि दस दिन तक बंदूक रामनगर स्थित कॉर्बेट संग्रहालय में रखी जाएगी। ताकि लोग कार्बेट की धरोहर को देख सकें।
जिम कॉर्बेट के नाम गढ़वाल और कुमाऊं के कई खूंखार आदमखोर बाघों को मारने का रिकार्ड है। खास बात यह है कि जब चंपावत में 436 लोगों को आदमखोर ने मार डाला था तो उस वक्त इस नरभक्षी को ढेर करने के लिए जिम कॉर्बेट को बुलाया गया।
आतंक का पर्याय बन चुके बाघ को जिम ने ही निशाना बनाया। इसका वर्णन कॉर्बेट के जीवन पर लिखी गई किताब में भी है। इसी के बाद यूनाईटेड प्रोविंस (उप्र) के तत्कालीन गर्वनर जेम्स हेबिट ने वर्ष 1907 में .275 बोर की इंग्लैंड की जॉन रिगबी निर्मित बंदूक जिम कॉर्बेट को उपहार स्वरूप भेंट की थी।
इस बंदूक से जिम ने चौघड़ में दो तथा रुद्रप्रयाग के आदमखोर बाघों को मारा था। आजादी के बाद 1947 में जिम कीनिया गए तो साथ में यह बंदूक भी ले गए। 19 अप्रैल 1955 को उनकी मौत के बाद यह बंदूक इंग्लैंड में एक व्यक्ति के पास चली गई।
जब बंदूक बनाने वाली कंपनी को इसकी जानकारी हुई तो कंपनी के मालिक मार्क न्यूटन व साइमन ने इसका पता लगाकर इसे खरीद लिया। कॉर्बेट पार्क प्रशासन को इस बात का पता चला तो बंदूक को देखने की इच्छा जाहिर की। किसी तरह कंपनी से संपर्क साधा।
सीटीआर प्रशासन के अनुरोध को स्वीकार करते हुए मार्क व साइमन इसे लेकर रविवार को यहां पहुंचे। कॉर्बेट संग्रहालय में घूमने के बाद दोनों रामनगर चले गए। दस दिन तक यहां रहने के बाद दोनों बंदूक लेकर इंग्लैंड लौट जाएंगे।
पढ़ें-रुद्रप्रयाग में पिंजरे में कैद हुआ तेंदुआ, ग्रामीणों ने ली राहत की सांस