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Uttarakhand Forest Fire: जंगलों में धधकी आग बढ़ा रही चिंता, वायु सेना ने संभाला मोर्चा; वन विभाग की तैयारी पर सवाल!

Uttarakhand Forest Fire प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्रफल होने के बावजूद वन विभाग संरक्षण को गंभीर नहीं दिखता। जंगलों में धधकी आग तब तक नहीं बुझती जब तक पूरा जंगल राख नहीं हो जाता। सवाल अब यह कि हर वर्ष वनाग्नि जैसी आपदा के लिए आखिरकार वन विभाग सेना की तरह एक्टिव क्यों नहीं रह सकता। नतीजतन हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाता है।

By naresh kumar Edited By: Swati Singh Published: Sat, 27 Apr 2024 09:03 PM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2024 09:03 PM (IST)
गोपेश्वर मुृख्यालय के पठियालधार के जंगलों में लगी आग। जागरण

नरेश कुमार, नैनीताल। प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्रफल होने के बावजूद वन विभाग संरक्षण को गंभीर नहीं दिखता। जंगलों में धधकी आग तब तक नहीं बुझती, जब तक पूरा जंगल राख नहीं हो जाता। नैनीताल के आसपास लगी आग के बाद भी यही आलम देखने को मिला। गनीमत रही कि वायु सेना ने मोर्चा संभाल लिया और कुछ ही घंटों में आग पर काबू पा लिया गया।

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सवाल अब यह कि हर वर्ष वनाग्नि जैसी आपदा के लिए आखिरकार वन विभाग सेना की तरह एक्टिव क्यों नहीं रह सकता। आग बुझाने की आधुनिक तकनीक के नाम पर आज भी विभाग के पास झांपे और रेक के अलावा कुछ भी नहीं है। उत्तराखंड में वनाग्नि प्रबंधन के हर वर्ष महज कागजी दावे किए जाते हैं, मगर विभाग के पास इसको लेकर कोई धरातली प्लान नजर नहीं आता।

हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल हो रहे राख

नतीजतन हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाता है। सरकार की ओर से जारी किया जाने वाला लाखों का बजट भी खपा दिया जाता है। अप्रैल माह की शुरुआत से ही नैनीताल समेत आसपास के जंगल धधक रहे हैं। विभागीय स्तर पर क्रू स्टेशन निर्माण के साथ ही अतिरिक्त फायर वाचर भी तैनात किए गए हैं। मगर धरातल पर नतीजा शून्य नजर आ रहा है।

वायु सेना ने खुद संभाला मोर्चा

दो दिन से गेठिया क्षेत्र में लगी आग लड़ियाकाटा वायु स्टेशन के करीब तक पहुंची तो वायु सेना को खुद संज्ञान लेना पड़ा। तत्काल वायु सेना के इलाहाबाद कमांड से हेलीकाप्टर भी मौके पर पहुंच गए। शनिवार सुबह से अभियान चलाकर कुछ ही घंटों में हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव कर किसी तरह आग पर काबू पाया गया। फायर लाइनों पर उगे पेड़, बन रहे बाधा फायर लाइन काटने समेत जंगल फूकान की व्यवस्था थी।

फायर लाइन काटने का कार्य ही पड़ा है बंद

वन पंचायत स्तर पर ग्रामीणों के साथ समन्वय बनाते हुए हर वर्ष फायर लाइन काटी जाती थी। जिससे एक क्षेत्र में लगी आग फायर लाइन के दूसरी ओर नहीं पहुंच पाती थी, मगर बीते कुछ दशकों से फायर लाइन काटने का कार्य ही बंद पड़ा है। नतीजतन, पुरानी फायर लाइन क्षेत्र में अब पेड़ उग आए हैं। तकनीक के नाम पर झांपा व रेक ही सहाराबीते कुछ वर्षों में विभाग की ओर से वनाग्नि रोकथाम के लिए ब्लोअर समेत आग पर नजर रखने के लिए ड्रोन प्रयोग के दावे किए गए थे। पूर्व में हाई कोर्ट ने भी विभाग को आग प्रबंधन के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का प्रयोग करने के निर्देश दिए थे। जिसके बावजूद जंगलों में आग लगने के बाद विभागीय कर्मचारियों के पास झांपा व रेक ही आखरी सहारा है।

आधुनिक तकनीक का क्यों नहीं लिया जाता सहारा

प्रदेश में वनाग्नि प्रबंधन के लिए विभागीय स्तर पर प्लान तो बनता है लेकिन हर वर्ष घटित इस आपदा के लिए विभाग की तैयारियां अधूरी रहती है। हर वर्ष फायर सीजन के दौरान स्थायी तौर पर हेलीकॉप्टर तैनात कर आग शुरू होते ही आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है। इसके अलावा बड़े ड्रोन की मदद से केमिकल छिड़काव कर आग पर काबू पाना आसान हो सकता है।

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