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अबकी बार वह होंगे वादे, जिनके लिए राज्य बना

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : गाव बचाओ यात्रा के संयोजक पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने गांवों का जन

By Edited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2017 01:00 AM (IST)
अबकी बार वह होंगे वादे, जिनके लिए राज्य बना
अबकी बार वह होंगे वादे, जिनके लिए राज्य बना

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : गाव बचाओ यात्रा के संयोजक पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने गांवों का जनपत्र जारी किया है। उन्होंने मांग की है कि इस बार राजनीतिक दल जनता से वही वादे करें, जिनके लिए राज्य का निर्माण हुआ और लोगों ने शहादत दी। राज्य आंदोलन विकास, रोजगार और पलायन रोकने के उद्देश्य को केंद्र में रखकर किया गया था। इनको छोड़ सभी काम हो रहे हैं। गाव बचाओ आदोलन गाव बसाने का ही एक बड़ा संकल्प है। देश की आत्मा गांवों में बसती है। खुशहाली और समृद्धि का रास्ता भी गांव से ही होकर जाता है।

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जनपत्र के मुख्य बिंदू

= प्रदेश का विकास कुछ शहरों तक ही सीमित रहा है। गांवों के विकास के लिए बजट का 70 फीसद गांवों पर खर्च होना चाहिए।

= शिक्षा गावों के लिए बड़ा विषय है। शिक्षा का स्तर गावों में बेहतर नहीं। अच्छी शिक्षा गाव की उन्नति के लिए जरूरी है। इसकी समीक्षा का समय है।

= पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। कहीं स्वास्थ्य केंद्र नहीं तो कहीं चिकित्सक। इसके लिए ठोस नीति की जरूरत है। दुर्भाग्य है कि आज तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं गावों से नहीं जुड़ पाई।

= राज्य की आवश्यक सेवाओं को पीपीपी मोड़ से मुक्त रखा जाए, राज्य में इन मुद्दों पर भारी अंसतोष है।

= उत्तराखंड जल, जंगल, जमीन से बड़ी पहचान रखता है, लेकिन सरकारें इन बिंदुओं पर कभी गंभीर नहीं रहीं। राज्य की बड़ी पहचान दुनिया में इसकी प्राकृतिक संपदाओं को लेकर है। उसके संरक्षण की पहल लोगों को जोड़कर किए जाने की आवश्यकता है।

= रोजगार का भी प्रबंध किया जाना चाहिए। इसके लिए राज्यों में कोई ठोस नीति नहीं है। युवाओं को घोषणाओं से बर्गलाया जा रहा है।

= स्थानीय संसाधन व उनसे जुड़ी तकनीकी और बाजार पर केंद्रित संस्थान की कल्पना की जानी चाहिये ताकि तकनीकी व कौशल शिक्षित युवा नये रोजगार के रास्ते तैयार कर सकें।

= जंगली जानवरों से संदर्भित खेती के नये आयाम तय किये जाएं।

= सरकार को खेती, बागवानी पर नये सिरे से केंद्रित होना होगा। हिमाचल का उदाहरण सामने है। स्थानीय फसलों, फलों और दूसरे उत्पादों के लिए बाजार मुहैया कराया जाए।

= उत्तराखंड का हिमालय संवेदनशील है। स्थान विशेष को संवेदनशील घोषित करना राज्य के अन्य क्षेत्रों की अनदेखी ही कहलाएगा। राज्य के लिए समान पारिस्थितिकी नीति होनी चाहिए।

= किसी भी तरह के पर्यावरण व पारिस्थिकीय संरक्षण में स्थानीय लोग केंद्र में हों। किसी भी नीति, कानून व विकास योजनाओं, जिनसे आमजन, पर्यावरण व गाव प्रभावित होते हों। लागू करने से पहले जनमत संग्रह जरूर हो।

= ब्रिटिश शासनकाल से आज तक भूमि व्यवस्था, सुधार कानूनों की स्थिति स्पष्ट नहीं रही है। इससे कृषि प्रभावित हो रही है। सही भूमि व्यवस्था व सुधार कानून भी आवश्यक है।

= वन निगम की तर्ज पर खनिज निगम की स्थापना की जाए, जिसका दायित्व राज्य सरकार के पास हो। इससे खनन क्षेत्र में हो रहे माफिया राज, भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके।

= 73वें, 74वें संशोधन लागू करना व ग्राम पंचायतों को सशक्त करना सरकार का सीधा दायित्व है। आज तक संशोधन लागू नहीं किए जा सके।

= आपदा प्रबंधन का वर्तमान ढाचा निरीह व कमजोर है। आपदा आ रही हैं और भविष्य में भी आती रहेंगी। इस पर गंभीरता बरतने का समय आ चुका है।

= उत्तराखंड देव भूमि है। यहा चारों धाम बसते हैं। शराब और नशे से जुड़ी किसी भी तरह की आय यहा नैतिक रूप से वर्जित होनी चाहिए। राज्य शराब व अन्य नशे के कारण बदहाली झेल रहा है। इससे सामाजिक, आर्थिक रूप ये लोग बर्बाद हो रहे हैं।

= गैरसैंण राजधानी पर राजनीतिक दलों को अपनी स्थिति स्पष्ट कर लेनी चाहिए। यह मुद्दा राज्य आंदोलन के शुरुआती दौर से आज तक अनसुलझा ही है।

= गाव का नेतृत्व वही करेगा जो गाव के सुख-दुख में बराबर की हिस्सेदारी करेगा। गाव में रहकर गाव के मुद्दों पर कार्य करेगा। वह लोग बर्दास्त नहीं किए जाएंगे, जो पलायन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देंगे। इसलिए चुनाव में स्थानीय चेहरा ज्यादा महत्वपूर्ण व उत्तरदायी हो पायेगा।


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