'मैं गौला हूं' के जरिये उभरी पहाड़ की पीड़ा
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : 'मैं गौला हूं, मैं गार्गी हूं, मैं मां हूं। आस्था रखने वालों के लिए देव
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : 'मैं गौला हूं, मैं गार्गी हूं, मैं मां हूं। आस्था रखने वालों के लिए देवी हूं। मुझमें मोक्ष के लिए अस्थियां प्रवाहित की जाती हैं। मुझसे लोगों का रोजगार चलता है। मेरे लिए राजनीति भी होती है और संघर्ष भी, लेकिन मेरी पीड़ा किसी को नहीं सुनाई पड़ती।' हल्द्वानी शहर के किनारे बहने वाली गौला की यह स्थिति शनिवार को पत्रकार दिनेश मानसेरा के निर्देशन में बनी 22 मिनट की लघु फिल्म 'मैं गौला हूं' में प्रदर्शित हुई। जिसमें प्रसिद्ध संचालक हेमंत बिष्ट की मधुर आवाज थी।
यह फिल्म रामपुर रोड के एक होटल में दिखाई जा रही थी। मेहमान थे दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार, अजीत अंजुम, सुशील बहुगुणा, हृदयेश जोशी, डॉ. गोविंद सिंह, कथाकार गीताश्री, पर्यावरणविद् सचिदानंद व इतिहासकार डॉ. अजय रावत जैसी हस्तियां। इस फिल्म के जरिये उत्तराखंड में दरकते पहाड़ की पीड़ा उभर आई। 'केदार तुम चुप क्यों हो' पुस्तक के लेखक हृदयेश जोशी ने माइक पकड़ा और दरकते पहाड़ के कारणों की पड़ताल करते हुए अतिथि वक्ताओं पर सवाल दाग दिए। जवाब में सबसे पहले इतिहासकार डॉ. रावत ने दो टूक कहा, दलदल में फंसा कोई भी दल पहाड़ में पर्यावरण की चिंता नहीं करता। हम ¨हदुस्तान की बात करते हैं, लेकिन पहाड़ छूट जाता है। अगला सवाल वित्त मंत्री से था। क्या हम सिर्फ चिंता ही करते रहेंगे? जवाब मिला, भारत सरकार ने नीति आयोग में हिमालयन रेंज के लिए अलग नीति बनाने का प्रावधान किया है। इसमें तमाम समस्याओं का समाधान है, लेकिन अब तक हम ठोस नीति नहीं बना सके। इसका कारण लिबरल डेमोक्रेसी है।
संचालक ने रवीश से पूछा, सरकारें एनजीटी से क्यों डरने लगी? जवाब में रवीश ने कहा, हम उजड़े हुए लोग हैं। वहां पहुंचें, जहां प्रकृति नहीं। स्थानीय लोग भी प्रकृति से कट गए। अब इस विनाशलीला को हम अपने बच्चों की सेहत से समझें। पर्यावरण मंत्री को जब कोयले की चिंता होगी तो पर्यावरण व पहाड़ के संरक्षण की स्थिति को समझा जा सकता है। कीड़ा जड़ी के नाम पर ग्लेशियरों को पिघला रहे माफिया पर सरकार की चुप्पी के सवाल पर सुशील बहुगुणा ने कटाक्ष किया, माफिया सरकार से मिले हैं, उनसे दो नंबर का पैसा सरकारी नुमाइंदों को मिल जाता है। क्यों खनन के लिए नदियां बांटी जाती हैं। इसलिए कि कोई बागी हो सके तो उसके सामने करोड़ों रुपये परोस सकें। इस रुपये से नोएडा, चंडीगढ़, देहरादून में बंगले खरीद सकें। सच्चिदानंद ने भी पहाड़ की आपदाओं को मानव निर्मित बताते हुए कहा, राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में ठोस नीति नहीं बन सकी। इससे पहले मानसेरा की पुस्तक दाज्यू बोले का विमोचन किया गया। लेखक डॉ. गोविंद सिंह, पत्रकार अजीत अंजुम व कथाकार गीताश्री ने पुस्तक पर चर्चा की।