छह लाख का काम, एक बारिश में तमाम
संवाद सहयोगी, गरमपानी : यह आपदा मद के धन की लूट नहीं तो क्या है। किसानों के खेत सींचने के लिए तैयार
संवाद सहयोगी, गरमपानी : यह आपदा मद के धन की लूट नहीं तो क्या है। किसानों के खेत सींचने के लिए तैयार की गई गरमपानी नहर एक बारिश नहीं झेल पाई और नहर की मरम्मत के नाम पर किया गया छह लाख का काम तमाम हो गया। अब नहर खुद प्यासी है। जगह-जगह टूट गई है। इसके जख्मों को भरने के लिए फिर से आपदा मद से रुपये मांगे जाएंगे और नहर के बनने बिगड़ने का खेल भी चलेगा।
गरमपानी नहर का हश्र वर्धो और कोसी नहर की तरह हुआ है। किसानों को चढ़ते पारे के बीच सिंचाई की चिंता सताने लगी है। अल्मोड़ा व नैनीताल की सीमा पर वर्षो पहले गरमपानी नहर बनाई गई थी। मकसद था कि इससे कोसी घाटी की उर्वर जमीन को उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी के पानी से तर किया जा सके, मगर रखरखाव तथा विभागीय उपेक्षा से नहर 2010 की आपदा में क्षतिग्रस्त हो गई। विभागीय सूत्र बताते हैं तब आपदा मद से नहर का पुनर्निर्माण कराया गया। छह लाख खर्च कर यह कार्य 2013 में पूरा हुआ। काश्तकारों के मुताबिक कुछ माह नहर से पानी तो मिला लेकिन फिर बंद हो गया। अब जबकि गर्मी बढ़ने लगी है। खेतों को नियमित सिंचाई की जरूरत है तो विभागीय अफसर मार्च पहले सप्ताह में हुई भारी बारिश में नहर के फिर क्षतिग्रस्त होने का हवाला दे रहे हैं। मतलब साफ है कि छह लाख रुपये का काम दिखाकर नहर को इतना कच्चा बनाया गया कि एक बारिश में ही सारी सच्चाई सामने आ गई।
वर्धो नहर की गुणवत्ता पर भी सवाल
वर्धो नहर की गुणवत्ता पर भी सवाल उठने लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप सिंह बोरा के अनुसार 2010 में क्षतिग्रस्त नहर की मरम्मत में मिट्टी मिश्रित रेत का लेप लगाया जा रहा है। यही वजह है पूर्व में कई बार नहर टूट चुकी है। उन्होंने उच्चस्तरीय जांच की मांग उठाई है।
होली के आसपास जो बारिश हुई, उससे नहर कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गई है। इसी वजह से सिंचाई के लिए पानी नहीं छोड़ पा रहे हैं। जल्द ही मरम्मत कराई जाएगी, ताकि किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल सके।
- विजेंद्र कुमार, ईई सिंचाई विभाग