विश्व को भारतीय न्याय दर्शन की जरुरत
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: न्यायशास्त्र प्राचीन विधा है। दुनिया को इसके लिए भारत का कृतज्ञ होना चाह
जागरण संवाददाता, हरिद्वार: न्यायशास्त्र प्राचीन विधा है। दुनिया को इसके लिए भारत का कृतज्ञ होना चाहिए। प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों के ज्ञान के अथक प्रयासों से ही न्याय दर्शन का उदय हुआ। वर्तमान समय में दुनिया में नीति का लोप हो रहा है और अनीति बढ़ रही है। ऐसे विकट समय में विश्व की मानवता के कल्याण लिए न्याय सिद्धांत की महत्ता और बढ़ जाती है।
यह बातें उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सहयोग से न्याय सिद्धांत के अनुमानखंड पर आयोजित दस दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि संस्कृत शिक्षा सचिव दीपक कुमार गैरोला ने कही।
उन्होंने कहा कि किसी भी वस्तु के ज्ञान में प्रमाणिकता जरूरी है। शोध के परिणामों में भी अनुमान की सार्थक भूमिका है। यहां तक कि बाजार, ज्ञान-विज्ञान, मौसम आदि सभी विषयों में अनुमान की महत्ता है। विशिष्ट अतिथि संस्कृत अकादमी के सचिव जीएस भाकुनी ने संस्कृत को देववाणी बताते हुए कहा कि इस कार्यशाला से न्यायशास्त्र के गूढ़ सिद्धांतों को जानने का मौका मिलेगा। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पीयूषकान्त दीक्षित ने स्वागत भाषण के साथ न्याय सिद्धांत के अनुमानखण्ड पर विस्तार से प्रकाश डाला। कहा कि प्राकृतिक न्याय सिद्धांत भारत की देन है। भारत के ऋषि-मुनियों ने मानवता के मूल तत्व को समझ लिया था। उन्होंने न्यायशास्त्र के व्यावहारिक ज्ञान से समाज को अवगत कराने पर बल दिया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र कुमार ने भाषण में वेद की महत्ता पर प्रकाश डाला। इससे पूर्व कार्यक्रम के शुभारंभ पर डॉ. नारायण प्रसाद भट्टराई ने मंगलाचारण किया। विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र के छात्रों ने सरस्वती वन्दना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. गिरीश अवस्थी, प्रो. दिनेश चन्द्र चमोला, सहायक कुलसचिव दिनेश कुमार, वित्त नियंत्रक डॉ. तन्•ाीम अली, डॉ. अरविन्द नारायण मिश्र, डॉ. शैलेश कुमार तिवारी, प्रो. मोहन चन्द्र बलोदी, डॉ. हरीश चन्द्र तिवाड़ी, डॉ. दामोदर परगाई, डॉ. खुशेन्द्र देव चतुर्वेदी, मनोज गहतोड़ी, आशुतोष दुबे, सह संयोजिका मीनाक्षी सहित अनेक लोग उपस्थित थे।