अक्षय पात्र दूर भगाएगा कुपोषण
जागरण संवाददाता, रुड़की: महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से आंगनबाड़ी केंद्रों के बेहतर संचा
जागरण संवाददाता, रुड़की: महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से आंगनबाड़ी केंद्रों के बेहतर संचालन और बच्चों को कुपोषण की समस्या से दूर करने के लिए नई-नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। इसी कड़ी में विभाग की ओर से अक्षय पात्र एक अभिनव प्रयास नाम से एक और पहल की जा रही है। इसका उद्देश्य सामुदायिक सहभागिता बढ़ाकर नौनिहालों को दिए जाने वाले अनुपूरक पोषाहार की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
जिले में इस समय 2913 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। इनमें तीन से छह साल तक के करीब एक लाख बच्चे पंजीकृत हैं। रुड़की ब्लॉक की बात करें तो यहां पर तीन बाल विकास परियोजनाओं के अंतर्गत वर्तमान में सात सौ से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र चलाए जा रहे हैं। बाल विकास विभाग इन केंद्रों में बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा देने के साथ ही अनुपूरक पोषाहार भी देता है, लेकिन प्रति बच्चा मात्र छह रुपये का बजट होने की वजह से बच्चों को उचित मात्रा में पौष्टिक और पर्याप्त मात्रा में आहार नहीं मिल पाता है। इस वजह से अक्षय पात्र योजना शुरू करने की योजना बनाई गई है। इसके तहत प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र में एक अक्षय पात्र (बर्तन) रखा जाएगा। इसमें केंद्रों में पंजीकृत बच्चों के माता-पिता और आसपास के क्षेत्र से जो कोई भी खाद्य सामग्री जैसे- आटा, चावल, दाल, सब्जी आदि दान करना चाहता है, वो कर सकेगा। जिला कार्यक्रम अधिकारी मोहित चौधरी के अनुसार अक्षय पात्र योजना को शुरू करने का उद्देश्य अनुपूरक पोषाहार की गुणवत्ता, सामुदायिक सहभागिता और केंद्रों में आने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि लाना है। साथ ही जब इस योजना के जरिए माता-पिता केंद्रों से जुड़ेंगे तो बच्चों की संख्या में भी इजाफा होगी। उनके अनुसार इस योजना को और अधिक बेहतर किस तरह से बनाया जा सके, इसके लिए मंथन किया जा रहा है। मार्च से इस योजना को सभी केंद्रों में शुरू करने की योजना है।
कागजों में कुछ और हकीकत में कुछ
अनुपूरक पोषाहार के लिए अभी प्रति बच्चा काफी कम बजट होने के कारण कुछ केंद्रों में तो बच्चों को मात्र खानापूर्ति के लिए पोषाहार दिया जा रहा है। मेन्यू में खिचड़ी, दाल रोटी, दलिया आदि होने के बावजूद कई केंद्रों में बिस्कुट, कुरकुरे आदि बच्चों को दिया जाता है।
कुछ राज्यों में चल रही योजना
कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश राज्य में इस योजना को संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरुआत की गई है। अब उत्तराखंड राज्य में इस योजना को प्रारंभ किया जाएगा। इसके लिए जीओ जारी हो गया है।