जब जगमगा उठी पहाड़ों की रानी
ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों की सबसे पसंदीदा नगरी रही पहाड़ों की रानी को 106 साल पहले आज (25 मई) ही के दिन पहली बार विद्युत रोशनी मिली थी। यह संभव हुआ गलोगी पावर हाउस के अस्तित्व में आने से।
सूरत सिंह रावत, मसूरी। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों की सबसे पसंदीदा नगरी रही पहाड़ों की रानी को 106 साल पहले आज (25 मई) ही के दिन पहली बार विद्युत रोशनी मिली थी। यह संभव हुआ गलोगी पावर हाउस के अस्तित्व में आने से। गलोगी उत्तर भारत का पहला और देश का दूसरा जल विद्युत गृह है, जहां विद्युत उत्पादन शुरू हुआ था।
अपनी दिलकश आबोहवा के कारण अंग्रेजी को मसूरी बहुत पसंद थी, इसलिए उन्होंने यहां हर प्रकार की नागरिक सुविधाएं विकसित करने के प्रयास किए। इनमें विद्युत सुविधा मुहैया कराना भी एक था। इसके लिए मसूरी-देहरादून मार्ग पर भट्टा गांव से करीब तीन किमी नीचे तलहटी में सिटी बोर्ड मसूरी के माध्यम से गलोगी पावर हाउस का निर्माण करवाया गया।
पावर हाउस की टरबाइन, पाइप और अन्य विद्युत सामग्री इंग्लैंड से समुद्र के रास्ते मुंबई मंगवाई गई। वहां से देहरादून तक रेल और देहरादून से राजपुर होते हुए गलोगी तक बैलगाड़ियों से यह सामान लाया गया।1पावर हाउस हालांकि 1907 में बनकर तैयार हो गया था, लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजना होने के कारण अंग्रेज अधिकारी इसको चालू करने से पहले शत-प्रतिशत आश्वस्त हो जाना चाहते थे।
लिहाजा, लगभग सवा साल तक ट्रायल लेते रहे और पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद 1909 में 25 मई का दिन मसूरी को विद्युत प्रकाश देने के लिए दिन नियत किया गया। आखिर वह शुभ घड़ी भी आ गई और 25 मई की शाम लाईब्रेरी चौक में जब बिजली के लट्टुओं ने चमक बिखेरी तो मसूरीवासी हतप्रभ रह गए।
सबसे पहले सरकारी कार्यालयों को विद्युत सप्लाई दी गई और उसके बाद स्कूल, होटल और घरों को विद्युत कनेक्शन दिए गये। बाद में देहरादून के राजपुर, अनारवाला आदि स्थानों तक भी बिजली पहुंचाई गई। आज भी गलोगी पावर हाउस से मसूरी के झड़ीपानी व बार्लोगंज के इलाकों को सप्लाई मिल रही है।
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