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अब किन्‍नर करेंगे ऐसा काम, जिससे बढ़ेगा उनका मान

किन्नर समुदाय भी 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान का हिस्सा बनने जा रहा है। बेटी के जन्म लेने पर वे न सिर्फ खुशियां मनाएंगे, बल्कि आशीर्वाद के साथ ही 101 रुपये का शगुन भी देंगे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 01:33 PM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 05:01 AM (IST)
अब किन्‍नर करेंगे ऐसा काम, जिससे बढ़ेगा उनका मान
अब किन्‍नर करेंगे ऐसा काम, जिससे बढ़ेगा उनका मान

देहरादून, [अशोक केडियाल]: 'यदि बेटी न होगी, तो न बहन होगी न मां, न समाज न देश न दुनिया, फिर किस चांद व मंगल पर जाएंगे और कौन सी दुनिया बसाएंगे।' कुछ इसी जज्बे के साथ किन्नर समुदाय भी 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान का हिस्सा बनने जा रहा है।

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किसी घर में बेटी के जन्म लेने पर वे न सिर्फ खुशियां मनाएंगे, बल्कि आशीर्वाद के साथ ही 101 रुपये का शगुन भी देंगे। यही नहीं, लोगों को बेटी के महत्व को समझाने के साथ ही उन्हें बताएंगे कि बेटियां बोझ नहीं, बल्कि इन्हीं से दो वंशों का नाम रोशन होता है। लिहाजा, बेटियों की बेहतर शिक्षा-दीक्षा के साथ ही उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।

किन्नर समुदाय प्रथम चरण में यह पहल देहरादून जिले से करने जा रहा है। 'दया भारत सोसायटी' की संस्थापक एवं राज्य महिला आयोग की पूर्व उपाध्यक्ष मैडम रजनी रावत कहती हैं कि समाज हित में किन्नर समुदाय की यह कोशिश मील का पत्थर साबित होगी। 

वहीं, जिला एड्स कंट्रोल सोसायटी के कार्यक्रम अधिकारी नवीन मांगलिक बताते हैं कि किन्नर समुदाय के लोगों को 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान के साथ ही एचआइवी के प्रति भी जागरूक किया जा रहा है। किसी भी घर में बच्ची के जन्म लेने पर किन्नर समुदाय के लोग न सिर्फ बधाई देंगे, बल्कि अभियान का संदेश भी देंगे। यही नहीं, वे नवजात के वक्त पर टीककारण आदि के महत्व को भी समझाएंगे।

इसे लेकर उनमें खासा उत्साह है। उन्होंने बताया कि जल्द ही सोसायटी की ओर से हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, नैनीताल समेत अन्य स्थानों पर भी प्रशिक्षण देने की योजना है। मकसद यही है कि लोग जागरूक हों और वे बेटियों के महत्व को समझें। इस मुहिम में किन्नर समुदाय का साथ लिया जा रहा है।

मैदानी क्षेत्रों में बेहतर नहीं लिंगानुपात

78.8 फीसद साक्षरता दर वाले उत्तराखंड में लिंगानुपात बहुत बेहतर नहीं हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर ही गौर करें तो यहां यह अनुपात 963 महिलाओं पर 1000 पुरुष है। इनमें भी मैदानी जिलों में स्थिति अधिक चिंताजनक है। देहरादून (902), हरिद्वार (879), ऊधमसिंहनगर (919) व नैनीताल (933) जैसे जिलों में स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। ऐसे में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को व्यापकता देने की जरूरत है। वहीं, पहाड़ी जिलों में स्थिति बेहतर है। रुद्रप्रयाग जिले में प्रति हजार पुरुषों पर 1115 महिलाएं, चमोली में 1021, टिहरी में 1078, पौड़ी में 1103, पिथौरागढ़ में 1021, बागेश्वर में 1093, अल्मोड़ा में 1142, चंपावत में 981 और उत्तरकाशी में 963 महिलाएं हैं।

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