संस्कृति के संरक्षण को खुद से करें पहल
संवाद सूत्र, रायवाला: संस्कृति के संरक्षण और इसको भावी पीढ़ी तक पहुंचाने की बातें तो खूब होती हैं, ल
संवाद सूत्र, रायवाला: संस्कृति के संरक्षण और इसको भावी पीढ़ी तक पहुंचाने की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन इसके लिए धरातलीय प्रयास नहीं हो रहे हैं। इसके लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा और खुद आगे बढ़कर इसे आगे की पीढ़ी तक पहुंचाना होगा।
राज्य की सांस्कृतिक धरोहर लोकगीत, भाषा और वाद्य यंत्र आज लगातार हासिए पर हैं। राज्य बनने के बाद भी इनको पर्याप्त संरक्षण नहीं मिल सका। यह बातें प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने 'दैनिक जागरण' से मुलाकात के दौरान कही। उन्होंने कहा कि कुछ सांस्कृतिक संगठन यहां के विशिष्ट खान-पान, रीति रिवाज, लोग गीत, नृत्य, वाद्य यंत्र को संरक्षित व नई पीढ़ी तक पहुंचाने के प्रयास में जुटे हैं, लेकिन यह अब तक नाकाफी है। लोक कलाकारों को पर्याप्त प्रोत्साहन न मिलने से इसमें जुटे लोग अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। सिर्फ गाने बजाने से रोजी नहीं मिलती यही वजह है कि इन विधाओं के जानकार मुंह मोड़ रहे हैं और नई पीढ़ी इसे नहीं अपना रही है। कला क्षमता को व्यवसाय से भी जोड़ा जाना चाहिए। भावी पीढ़ी गढ़ संस्कृति को समझे और जाने इसके लिए पाठ्यक्रम में गढ़वाली भाषा को शामिल करना और भाषा अकेडमी खोला जाना बेहद जरूरी है। अपनी जिम्मेदारी महसूस कर लोक कलाकारों को भी नकल के बजाय वास्तविक संस्कृति को लोगों तक पहुंचाना चाहिए। संस्कृति में बदलाव आते हैं, लेकिन इसकी मूल आत्मा नष्ट न हो यह ध्यान रखा जाना जरूरी है। सिर्फ सरकार के भरोसे बैठे रहने से कुछ हासिल नहीं होगा। लोगों को खुद से पहल करनी होगी और अपनी संस्कृति व भाषा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। तभी इसको विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।