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मसूरी रोपवे को एलाइनमेंट समझने में लग गए सात साल

करीब सात साल के असफल प्रयासों के बाद उत्तराखंड शासन को यह समझ आ गया कि मसूरी रोपवे के धरातल पर नहीं उतर पाने के पीछे सबसे बड़ी खामी उसके एलाइनमेंट में ही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 29 Jul 2017 02:21 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jul 2017 07:23 PM (IST)
मसूरी रोपवे को एलाइनमेंट समझने में लग गए सात साल
मसूरी रोपवे को एलाइनमेंट समझने में लग गए सात साल

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: करीब सात साल के असफल प्रयासों के बाद उत्तराखंड शासन को यह समझ आ गया कि मसूरी रोपवे के धरातल पर नहीं उतर पाने के पीछे सबसे बड़ी खामी उसके एलाइनमेंट में ही है। शासन ने पाया कि रोपवे के लिए जो एलाइनमेंट बनाया गया है, वह पर्यटकों की मूलभूत जरूरतों पर खरा नहीं उतर पा रहा, लिहाजा इसमें बदलाव का निर्णय लिया गया है। अब तक के एलाइनमेंट के अनुसार रोपवे को पुरकुल से हाथीपांव होते हुए मसूरी में लाइब्रेरी तक पहुंचाना था, जबकि नई कवायद के मुताबिक रोपवे को कुठालगेट से सीधे लाइब्रेरी तक पहुंचाया जाना है।

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पर्यटन सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम के मुताबिक बाहर से जो पर्यटक आते हैं, यदि वह मसूरी पहुंचने के लिए रोपवे का सहारा लेते हैं तो शुरुआती स्थल से लेकर गंतव्य स्थल तक सभी सुविधाएं होनी चाहिए। अब तक के एलाइनमेंट के मुताबिक पहले पर्यटक पुरकुल तक पहुंचेंगे, फिर वह हाथी पांव में उतरेंगे और दोबारा रोपवे में सवार होकर मसूरी पहुंचेंगे। 

वाहन और सामान के साथ पर्यटकों के लिए यह साधन अड़चनभरा लगता है। यदि रोपवे कुठालगेट से सीधे लाइब्रेरी तक पहुंचेगा तो इससे पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि कुठालगेट में पर्यटकों के वाहनों के लिए पुख्ता पार्किंग व्यवस्था की जाएगी और जब वह बिना रुकावट के मसूरी पहुंचेंगे तो वहां पहले से सुलभ ट्रांसपोर्ट के आसान साधनों से अपने होटल या अन्य गंतव्य तक पहुंचेंगे। इसके लिए मसूरी में इलेक्ट्रिक कार जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। 

रोपवे को आगे नहीं आई कंपनियां

वर्ष 2009-10 के आसपास योजना की शुरुआत होने के बाद क्षेत्र भूवैज्ञानिक सर्वे, मिट्टी की जांच, एलाइनमेंट आदि के कार्यों में ही कई साल निकल गए। इसके बाद विधानसभा चुनाव से पहले जब टेंडर आमंत्रित किए गए तो एक भी कंपनी ने आवेदन नहीं किया। इस पर टेंडर की तिथि तीन बार आगे बढ़ाई गई, फिर भी नतीजे शून्य रहे। 

पांच किलोमीटर घटेगी दूरी

मौजूदा एलाइनमेंट के हिसाब से रोपवे की मसूरी तक की हवाई दूरी 10 किलोमीटर मापी गई है, जबकि कुठालगेट से सीधे मसूरी तक की योजना में यह दूरी करीब पांच किलोमीटर और कम हो जाएगी। अब तक की योजना की लागत करीब 200 करोड़ रुपये आंकी गई है और दूरी घटने के बाद यह लागत और कम हो जाएगी।

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