Move to Jagran APP

वैज्ञानिकों ने खोजी नीम व यूकेलिप्टस की प्रजाति, किसान होंगे मालामाल

न अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बारह साल के शोध के बाद गोरा नीम व यूकेलिप्टस की नई प्रजातियां खोजी। इसका उत्पादन कर किसान मालामाल हो सकेंगे।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 28 Feb 2017 11:16 AM (IST)Updated: Wed, 01 Mar 2017 06:50 AM (IST)
वैज्ञानिकों ने खोजी नीम व यूकेलिप्टस की प्रजाति, किसान होंगे मालामाल
वैज्ञानिकों ने खोजी नीम व यूकेलिप्टस की प्रजाति, किसान होंगे मालामाल

देहरादून, [जेएनएन]: वानिकी से जुड़े किसानों के लिए एक अच्छी खबर। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) देहरादून के वैज्ञानिकों ने करीब 12 साल के शोध के बाद गोरा नीम (मीलिया डूबिया) की 10 और यूकेलिप्टस की तीन नई प्रजातियां खोजी हैं। 

loksabha election banner

विशेषकर गोरा नीम की ये प्रजातियां उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प हैं, जो पापुलर की खेती करते आए हैं। इससे पापुलर के मुकाबले प्रति हेक्टेयर दो से तीन गुना अधिक उत्पादन मिल सकेगा। यानी ये किसानों की झोलियां खूब भरेंगी।

यह भी पढ़ें: दीमक दे रहे हैं पर्यावरण में बदलाव के संकेत

एफआरआइ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार और डॉ.केपी सिंह की अगुआई में वैज्ञानिकों की टीम पिछले 12 साल से गोरा नीम जिसे ड्रीक, मालाबार नीम आदि नामों से जाना जाता है, पर शोध जुटी हुई थी। साथ ही यूकेलिप्टस पर भी शोध चल रहा था। 

यह भी पढ़ें: ग्रामीणों के संकल्प से जंगल में फैली हरियाली, ऐेसे करते हैं सुरक्षा

डॉ. अशोक कुमार के अनुसार इस मुहिम के तहत गोरा नीम के 10 और यूकेलिप्टस के तीन क्लोन विकसित कर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इनका रोपण किया गया। नतीजे बेहद उत्साहजनक आए।

यह भी पढ़ें: अब पर्यावरण प्रहरी की भूमिका निभाएंगी मित्र पुलिस

डॉ. कुमार ने बताया कि गोरा नीम की सभी 10 प्रजातियों से प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर औसतन 34.57 घन मीटर उत्पादन मिला। इसी प्रकार यूकेलिप्टस की प्रजातियों से औसत उत्पादकता प्रवितर्ष 5.7 घन मीटर प्रति हेक्टेयर की तुलना में 19.44 घन मीटर प्रति हेक्टेयर मिली। उन्होंने बताया कि गोरा नीम की कुछ प्रजातियों की उत्पादकता तो 55 घन मीटर प्रति हेक्टेयर तक रही।

यह भी पढ़ें: इस गांव के लोगों ने तो उगा दिया पूरा जंगल, जानिए

भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) की महानिदेशक वन डॉ.एसएस नेगी अध्यक्षता में हुई बैठक में एफआरआइ की खोज इन 13 प्रजातियों को स्वीकृति दी गई। एफआरआइ के वैज्ञानिकों की इस खोज को वानिकी से जुड़े किसानों के लिए बेहद मुफीद माना जा रहा है। इनसे अधिक उत्पादन मिलने के साथ ही प्लाइवुड उद्योग के अलावा पांच साल से अधिक की अवधि में अच्छी इमारती लकड़ी भी मिल सकेगी।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में एक अप्रैल से 'सुरक्षित हिमालय'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.