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उत्तराखंड में इस वजह से बदल रहा बारिश का मिजाज

पर्यावरणीय लिहाज से बेहद संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बारिश का मिजाज बदल रहा है। सतझड़ (सात दिन तक लगातार रिमझिम बारिश) अब बीते दौर की बात हो चली है।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 10:15 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 04:50 PM (IST)
उत्तराखंड में इस वजह से बदल रहा बारिश का मिजाज

रानीखेत, अल्मोड़ा [दीप सिंह बोरा]: पर्यावरणीय लिहाज से बेहद संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बारिश का मिजाज बदल रहा है। उत्तराखंड में भी इसे महसूस किया जाने लगा है। हालांकि, बारिश औसत के अनुरूप ही हो रही है, लेकिन इसका पहले जैसा स्वभाव अब नहीं रहा। 

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मानसून सीजन की ही बात करें सतझड़ (सात दिन तक लगातार रिमझिम बारिश) अब बीते दौर की बात हो चली है। इसकी जगह कम समय में मूसलाधार बारिश ने ले ली है। यही नहीं, कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ सरीखे हालात पैदा हो रहे हैं। 

विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के असर के फलस्वरूप यह स्थिति पैदा हुई है। यदि इस दिशा में गंभीरता से प्रयास नहीं हुए तो वर्षा चक्र में बदलाव की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो दो दशक पहले तक मानसून सीजन में हफ्तेभर तक बारिश की झड़ी लगी रहती थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक सतझड़ के दौरान 188 घंटे की संयमित बारिश धरती को तरबतर करने के साथ ही भूजल भंडार को समृद्ध करती थी। धीरे-धीरे इसमें कमी आती चली गई और पिछले चार-पांच सालों के दरम्यान तो तीन दिन तक रहने वाली वर्षा की झड़ी भी गायब हो चली। 

आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्षभर में उत्तराखंड में 1580.8 मिमी बारिश होती है, जिसमें मानसून सीजन (जून से सितंबर तक) का योगदान 1229.2 मिमी है। प्रतिवर्ष औसतन यह बारिश राज्य को मिल रही है, लेकिन इसके पैटर्न में बदलाव आया है। झड़ी के स्थान पर कम समय में अधिक बारिश हो रही है। जाहिर है, इससे दिक्कतें भी बढ़ी हैं।

इससे विशेषज्ञ भी खासे चिंतित हैं। मौसम विज्ञान केंद्र, देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह का मानना है कि वर्षा के पैटर्न में बदलाव की वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है। 

नेचुरल रिसोर्स डाट मैनेजमेंट इन उत्तराखंड के निदेशक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो.जेएस रावत के मुताबिक जो बारिश हो रही है, उसकी तीव्रता 10 से 15 फीसद अधिक हो गई है। उनका कहना है इस चुनौती से निपटने के लिए वैश्विक तापवृद्धि व जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों खासतौर पर मानवजनित कारकों पर अंकुश लगा प्रकृति के अनुरूप आचरण करना होगा। तभी वर्षा का बिगड़ता मिजाज संतुलित व समयबद्ध हो सकता है।

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