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चिता के साथ जले रिश्तों ने भिगोई पलकें

संवाद सहयोगी, देहरादून: शनिवार को लक्खीबाग श्मशान घाट का हृदय विदारक दृश्य देखकर सभी की आंखें छलछला

By Edited By: Published: Sat, 25 Oct 2014 09:32 PM (IST)Updated: Sat, 25 Oct 2014 09:32 PM (IST)
चिता के साथ जले रिश्तों ने भिगोई पलकें

संवाद सहयोगी, देहरादून: शनिवार को लक्खीबाग श्मशान घाट का हृदय विदारक दृश्य देखकर सभी की आंखें छलछला गईं। तीन साल की मासूम सुखमणि, जिसे कल तक अपनी मां हरजीत की छाती से एक पल के लिए भी अलग होना गवारा न था, वो आज मां की छाती से लिपटी तो थी, मगर न आंचल की छांव थी और न ही मां का दुलार। मां के साथ ही चिता पर लेटी सुखमणि के लिए थीं सिर्फ आग की लपटें। पास ही उसके नाज-नखरे उठाने वाले नाना जय सिंह व नानी कुलवंत कौर की चिता भी जल रही थी। राजधानी में चौहरे हत्याकांड के बाद एक परिवार के अंत का यह दृश्य देखना हर व्यक्ति के लिए असहनीय था।

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रिश्तों का यह सिला देखकर लोगों का दर्द सीने से निकलकर आंखों से छलक पड़ा। जिस बेटे की सुख-शांति के लिए परिवार ने कई जतन किए, वही उनके खून का ऐसा प्यासा हुआ कि परिवार को ही मिटा डाला। हत्यारोपी ने न सिर्फ अपनी सौतेली बहन का कत्ल किया, बल्कि पालनहार माता-पिता को मारकर रिश्तों को शर्मसार कर दिया। चिता पर लेटे माता-पिता ने शायद ही कभी सोचा होगा कि जब यह दिन आएगा तो उनका बेटा चिता को आग नहीं देगा। शनिवार को लक्खीबाग श्मशान घाट पर मौजूद लोग रिश्तों के खून से रंगी इस दास्तान से न सिर्फ स्तब्ध थे, बल्कि उनके दिल का दर्द भी चिता की लपटों की तरह रह रहकर उठ रहा था। अंतिम विदाई का सबसे दुखद पहलू, जो लोगों के चेहरों पर साफ देखा जा रहा था, वह यह कि हत्याकांड में एक ऐसा रिश्ता भी खाक हो गया था, जिसने अभी जन्म तक नहीं लिया था। इसी बच्चे के जन्म का ख्वाब संजोकर पिता अरविंद सिंह को कुछ दिन बाद दून पहुंचना था। अरविंद ने कभी सोचा भी न होगा कि उन्हें पत्नी व बेटी के साथ उस होने वाली संतान की चिता को भी इस तरह मुखाग्नि देनी होगी। अरविंद के साथ उनके बेटे कंवलजीत ने भी अपनी नम पलकों से अपनी मां, बहन व होने वाले भाई या बहन की चिता को आग दी। उधर, जय सिंह व उनकी पत्नी कुलवंत कौर की चिता को जय सिंह के बड़े भाई जोगेंद्र सिंह ने मुखाग्नि दी।

सहमा सा एकटक देखता रहा कंवल

दीवाली की रात हुई वारदात का डर और दर्द पांच साल का कंवलजीत शायद ही कभी भुला पाए। यही डर और दर्द शनिवार को श्मशान घाट पर भी कंवलजीत के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। अपनी मां, नाना और नानी की चिताओं को बिना कुछ कहे कंवलजीत सिर्फ देखता ही रहा।


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